पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
ऋषि : चन्द्र/चिक्लीत, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : चिक्लीत-मातृ श्रीलक्ष्मी, बीज : अं, शक्ति : लं, कीलक : श्रीं आ॑पः स्रवन्तु स्नि॑ग्धानि चि॑क्लीत व॑स मे गृहे॑। नि॑ च देवीं॑ मात॑रं श्रि॑यं वास॑य मे कुले॑॥१२॥ पाठान्तर: आपः॑ सृ॒जन्तु॑ स्नि॒ग्धानि॒ चि॒क्ली॒त व॑स मे॒ गृहे । नि च॑ दे॒वीं मा॒तरं॒ श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले ॥ उपरोक्त ऋचा में आपः के स्रवण का उल्लेख है। लक्ष्मीनारायण संहिता में प्रसविष्णु/प्रस्रविष्णु असुर का उल्लेख आया है जो महालक्ष्मी को अपनी भार्या बनाना चाहता है। उपरोक्त ऋचा में देवी को माता कहा गया है। यदि असुर का नाम प्रसविष्णु मानें तो उसका गुण सविता देव की भांति प्रसव करना, किसी कार्य को करने की मूल प्रेरणा देना होना चाहिए जिसमें कोई त्रुटि असुरत्व को जन्म दे सकती है। वैदिक अथवा पौराणिक साहित्य में चिक्लीत शब्द अन्यत्र नहीं मिल पाया है। चिक्लीत का निकटतम शब्द चिक्रीड हो सकता है। वैदिक साहित्य में इन्द्र के सखा बने मरुत नामक प्राणों के एक गण का नाम क्रीडिनः है। उपरोक्त ऋचा का विनियोग 81 घटों द्वारा देवी के अभिषेक हेतु निर्दिष्ट है।
ऋषि : जातवेदस, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : श्री महालक्ष्मी, बीज : ?, शक्ति : ? कीलक : ? पक्वां॑ पुष्क॑रिणीं पुष्टां॑ पिङ्ग॑लां पद्ममालि॑नीम्। सूर्यां॑ हि॑रण्मयीं लक्ष्मीं॑ जा॑तवेदो म॑मा॑ वह॥१३॥ उपरोक्त ऋचा के यन्त्र में 7x5=35 कोष्ठक हैं।
ऋषि : जातवेदस, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : श्री राज्यलक्ष्मी, बीज : श्रीं, शक्ति : हं, कीलक : ह्रीं आर्द्रां॑ पुष्क॑रिणीं यष्टीं॑ सुव॑र्णां हेममालि॑नीम्। चन्द्रां॑ हि॑रण्मयीं लक्ष्मीं॑ जा॑तवेदो म॑मा॑ वह॥१४॥ पाठान्तर : आ॒र्द्रां पु॒ष्करि॑णीं पु॒ष्टिं॒ सु॒व॒र्णाम् हे॑ममा॒लिनीम् । सू॒र्यां हि॒रण्म॑यीं ल॒क्ष्मीं जात॑वेदो म॒ आव॑ह ॥ |