पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shameeka, Shambara, Shambhu, Shayana/sleeping, Shara, Sharada/winter, Sharabha, Shareera / body etc. are given here. Comments on Sharabhanga and Sharabha are also included. शमीक पद्म १.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में चमसाध्वर्यु), भागवत १.१८(परीक्षित् द्वारा सर्प से शमीक ऋषि का अपमान, शमीक - पुत्र शृङ्गी द्वारा परीक्षित् को शाप), मत्स्य ४६(शूर व भोजा - पुत्र, ४ पुत्रों के नाम, तप से राजर्षित्व प्राप्ति), मार्कण्डेय ३, वामन ६९.१३२(शीला - पति, मातलि पुत्र की प्राप्ति ), स्कन्द २.१.११, ३.१.४१, shameeka/ shamika
शम्बर गणेश २.७६.१४(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शम्बर का मदन से युद्ध), गर्ग ७.३२, ७.४२.१८(पूर्व जन्म में परावसु गन्धर्व - पुत्र), पद्म १.६.५०(दनु - पुत्र), ब्रह्म १.९१(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न के हरण का प्रसंग), २.६४(शम्बर द्वारा ऋषियों के सत्र की रक्षक प्रमदा रूपी माया का भक्षण), २.९०.८(शम्बर व मय के अश्विनौ से युद्ध का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.२, ४.११२(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न हरण की कथा), भविष्य ३.३.२३, ३.३.२५.२८, भागवत ८.६, ८.१०.२९(शम्बर का त्वष्टा से युद्ध), १०.५५, वामन ९(शम्बर के विमान वाहन का उल्लेख), ६६.४२(शिव को प्रेषित अन्धक का दूत), ६९.५९(शम्बर का द्वादश आदित्यों से युद्ध), विष्णु १.१९.१६(प्रह्लाद को नष्ट करने के लिए शम्बर द्वारा मायाओं का प्रयोग), ५.२७(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न का हरण, प्रद्युम्न द्वारा शम्बर का वध), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.१(शम्बर की आवर्त उपमा), शिव २३१९, स्कन्द १.१.२१.११२(शम्बर द्वारा रति का हरण, मायावती नामकरण), १.२.१८(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र का प्रयोग करके देव - दानव रूपों का विपर्यय करना), ५.२.७२, ५.३.८५.२८, ५.३.१२०.४, ५.३.१६९.३३, ५.३.१७२.१४, हरिवंश २.१०४(शम्बर द्वारा प्रद्युम्न हरण का प्रसंग, शम्बर - पुत्रों के नाम), २.१०५(शम्बर के रथ का वर्णन), ३.५०.२२(बलि - सेनानी, रथ का वर्णन), ३.५३.११(शम्बर का भग से युद्ध ), महाभारत कर्ण ३.२२, योगवासिष्ठ ३.१०६+शाम्बरिक, ४.२५, ४.२७, ४.३०, लक्ष्मीनारायण १.१८५, कथासरित् ८.२.३७६, १८.३.७५, द्र. वंश दनु shambara
शम्बूक पद्म १.२९, १.३५.८५(राम द्वारा तपस्यारत शम्बूक शूद्र के वध की कथा), शिव ३.५, ३.१८, वा.रामायण ७.७६- (शम्बूक शूद्र द्वारा स्वर्ग प्राप्ति हेतु तप, राम राज्य में अनिष्ट पर राम द्वारा वध ), कथासरित् ३.६.७८(अग्नि के शम्बूक(घोंघा) रूप में पर्वत में छिपने का उल्लेख ) shambooka/shambuuka/ shambuka
शम्भल गरुड २.५.११६(शम्बल मल का कथन), २.१६.८(प्रेत के संदर्भ में शम्बल की भूमिका), लक्ष्मीनारायण १.६४.४३(शम्बल : प्रेतपुरी का अधिपति ), २.८३.९५, ३.१०६.५२शम्भलवार, shambhala
शम्भु पद्म ५.१०४(शिव द्वारा शम्भु ब्राह्मण का रूप धारण, अयोध्या में राम से पुराण, शकुन आदि का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.४९(शम्भु से मस्तक की रक्षा की प्रार्थना), ४.९४.१०८(शम्भु के ज्ञान स्वरूप होने का उल्लेख), भविष्य ३.२.२२शम्भुदत्त, ३.४.२२(शम्भु का हरिप्रिय रूप में जन्म), भागवत ९.६.१, मत्स्य १५३.४४(एकादश रुद्रों में से एक, तारक - सेनानी गज से युद्ध), वराह ३६, वामन ६९.५३(अन्धक - सेनानी, ब्रह्मा से युद्ध), ७०(, ९०.१७(ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु नाम से वास), वायु ६७, ९०.७(मणिमति ह्रद में विष्णु का शम्भु नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१८०(हंस रूपी विष्णु द्वारा शक्र - पीडक शम्भु का वध), स्कन्द २.७.१९.२१(शम्भु के गिरिजा देवी से श्रेष्ठ व बुद्धि से अवर होने का उल्लेख), ३.२.२३, वा.रामायण ७.१७.१४(शम्भु दैत्य द्वारा कुशध्वज की हत्या ) shambhu
शम्या ब्रह्म २.३३(शमीतीर्थ में प्रियव्रत के यज्ञ में हिरण्यक दानव का आगमन, देवों का वृक्षों में छिपना), शिव २.५.८.११(शिव रथ में कलाओं का शम्या बनना ), स्कन्द ५.३.२८.१७(शिव के रथ में शम्या में वरुण-नैर्ऋत की स्थिति का उल्लेख), shamyaa
शयन अग्नि १२१.५४(विष्णु के शयन व प्रबोधन हेतु तिथि विचार), ३४८.११, पद्म १.२५(आदित्य शयन व्रत), १.२६(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत), १.२९, ६.५३(हरिशयनी एकादशी माहात्म्य), ६.१०८(अनन्त शयन तीर्थ में चोल राजा का आगमन, विष्णुदास से भक्ति की स्पर्द्धा), भविष्य ४.७०(देवशयन द्वादशी व्रत, चातुर्मास में वर्ज्य - अवर्ज्य), ४.२०६(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत), मत्स्य ५५(आदित्य शयन व्रत विधि व माहात्म्य), ५७(रोहिणी - चन्द्र शयन व्रत विधि, चन्द्रमा का न्यास), ६०(सौभाग्य शयन व्रत), ७१(अशून्य शयन द्वितीया व्रत, गोविन्द की पूजा, शय्या दान), वामन १६(देवशयन तिथियां), विष्णुधर्मोत्तर २.९४, स्कन्द २.२.३६, ३.३.१२.२२(शयन स्थिति में अव्यय शिव से रक्षा की प्रार्थना), ५.३.६७.४३, हरिवंश १.५०(विष्णु शयन), ३.९(नारायण का एकार्णव में शयन), लक्ष्मीनारायण २.२७, २.१०१, २.१२७.८६(देहेन्द्रियादि शयन की अपेक्षा वासना शयन की आवश्यकता का उल्लेख ), द्र. देवशयन shayana
शय्या अग्नि ३४२.२६(कविशक्ति को प्रस्फुटित करने वाली मुद्रा का नाम), गरुड २.२.७४(शय्याहर्ता के क्षपणक बनने का उल्लेख), ३.११.१(विष्णु के निद्रागत होने पर लक्ष्मी की शय्या रूप में स्थिति का कथन), ३.२९.६४(शय्या काल में संकर्षण के ध्यान का निर्देश), गर्ग ५.१७.५(शय्योपाकरिका गोपियों की कृष्णविरह पर प्रतिक्रिया), नारद २.२२.७९(त्रिरात्रोपवासी के लिए कांचन शय्या दान का निर्देश), भविष्य ४.१८४(शय्या दान विधि, जीवित व मृत - शय्या दान), शिव ५.२०.२३(पांच राजैश्वर्यविभूतियों में से एक), स्कन्द ५.३.५०.२०(शय्यादि दान का फल), ५.३.५६.१२०(यानशय्याप्रद द्वारा भार्या प्राप्त करने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१६.१३(चित्तवृत्तियों के लिए अनल्पकल्पनातल्प ), कथासरित् १२.१५.३८, shayyaa
शर पद्म १.४०(मरुतों में से एक), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.७६(नरक में शरकुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३१.१५(दत्तापहारी के नरक में शरशय्या प्राप्त करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.६.५६(शर धातु का अर्थ), भागवत ११.७.३४(शरकृत : दत्तात्रेय - गुरु), मत्स्य ११शरवण , वराह २१.३५(सात स्वरों के शर बनने का उल्लेख), वामन १७ (शरस्तम्ब की शेषनाग से उत्पत्ति), विष्णु १.२२.७३(विष्णु के शर : ज्ञान व कर्म मयी इन्द्रियों के प्रतीक), विष्णुधर्मोत्तर ३.३७.१५शर /शार, स्कन्द ६.१८५(अतिथि द्वारा शरकार से एकचित्तता की शिक्षा), हरिवंश २.१२७.९, वा.रामायण ७१६, योगवासिष्ठ ४४८शरलोमा, लक्ष्मीनारायण १.३७०.९६(नरक में शरकुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख), १.४९१.२, २.२७.१०५(शरस्तम्ब की नाग से उत्पत्ति ), कथासरित् ७.५.१६९शरवेग , १८.२.२७७शरवेग, द्र. कुष्ठिशर, पराशर, बृहच्छर shara
शरण वा.रामायण ६.१८(राम द्वारा शरणागत की रक्षा के महत्त्व का वर्णन), लक्ष्मीनारायण १.११६.३०(शरणागति के ६ भेदों का कथन ) sharana
शरद ब्रह्मवैवर्त्त २.२७.८२(शारदीय पूजा का संक्षिप्त माहात्म्य), भागवत १०.२०.३२(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), वामन २, विष्णु ५.१०(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर १.२४४(राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन), हरिवंश २.१६(व्रज में शरद ऋतु का वर्णन), २.१९.५१(इन्द्र द्वारा शरद ऋतु का वर्णन), वा.रामायण ४.३०(राम द्वारा शरद ऋतु का वर्णन ) sharada
शरदण्डा वा.रामायण २.६८.१५(शरदण्डा नदी )
शरद्वसु शिव ३.५,
शरद्वान मत्स्य ५०, १४५.९५(शरद्वान् द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), हरिवंश १.३२
शरभ गरुड ३.२९.१५ (पर्जन्य का शरभ नाम - एतावता शरभाख्यो महात्मा स चान्तरो स तु पर्जन्य एव ॥ शश्वत्केशा यस्य गात्रे खगेन्द्र प्रभास्यन्ते शरभाख्यो पयोतः ।), देवीभागवत १२.६.१४७(शरभा : गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ६.१८९.८ (राजा के सेनानी सरभभेरुंड का हय बनना, गीता के १५वें अध्याय से मुक्ति), ६.२०१.१९+ (ललिता -पति, देवल से पुत्र प्राप्ति हेतु परामर्श, पार्वती की कृपा से शिवशर्मा पुत्र की प्राप्ति), ६.२०४.१ (शरभ वैश्य द्वारा अम्बिका की कृपा से पुत्र प्राप्ति), ब्रह्माण्ड २.३.७.२०७ (व्याघ्र वानर - पुत्र, शुक - पिता), लिङ्ग १.९६.६८ (नृसिंह के घोर रूप के निग्रह के लिए वीरभद्र द्वारा शरभ रूप धारण, विष्णु द्वारा भेरुण्ड रूप धारण(?) - कंठे कालो महाबाहुश्चतुष्पाद्वह्निसंभवः।। युगांतोद्यतजीमूत भीमगंभीरनिःस्वनः।।), वामन ३६.३१ (शरभ रूपी शिव द्वारा नृसिंह के गर्व का हरण - विष्णुश्चतुर्भुजो जज्ञे लिङ्गाकारः शिवः स्थितः।), शिव ७.१.१७.२४ (आङ्गिरस व स्मृति - पुत्र, आग्नीध्र – भ्राता - स्मृतिश्चांगिरसः पत्नी जनयामास वै सुतौ ॥आग्नीध्रं शरभञ्चैव तथा कन्याचतुष्टयम् ॥), स्कन्द ३.१.४९.३८ (शरभ द्वारा रामेश्वर की स्तुति - अंतःकरणमात्मेति यदज्ञानाद्विमोहितैः ।। भण्यते रामनाथं तमात्मानं प्रणमाम्यहम् ।।), ५.२.४४.१५(शरभ नामक मेघ की पश्चिम दिशा में नियुक्ति का उल्लेख - शरभः पश्चिमामाशां सहस्राधिपतिः कृतः ।।), हरिवंश ३.५३.१२ (शरभ व शलभ दैत्यों का सोम से युद्ध - शरभः शलभश्चैव दैत्यानां चन्द्रभास्करौ । प्रयुद्धौ सह सोमेन शैशिरास्त्रेण धीमता ।।), योगवासिष्ठ ५.१४.२४ (मत्त मेघों द्वारा शरभ के नाश का उल्लेख - सिंहोऽभिभवति व्याघ्रं शरभः सिंहमत्ति च । शरभो नाशमायाति मत्तमेघविलङ्घने ।।..), वा.रामायण १.१७.१५ (वानर, पर्जन्य का अंश - शरभं जनयामास पर्जन्यस्तु महाबलः ॥), ४.६५.४ (शरभ वानर की प्लवन शक्ति का कथन - शरभो वानरः तत्र वानरान् तान् उवाच ह । त्रिंशतं तु गमिष्यामि योजनानाम् प्लवंगमाः ॥), ६.१७.४३ (शरभ वानर द्वारा विभीषण शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना - प्रणिधाय हि चारेण यथावत् सूक्ष्म बुद्धिना । परीक्ष्य च ततः कार्यो यथा न्यायम् परिग्रहः ॥), ६.२६.३५ (सारण द्वारा रावण को शरभ का परिचय देना - महाबलो वीतभयो रम्यम् साल्वेय पर्वतम् ॥ राजन् सततम् अध्यास्ते शरभो नाम यूथपः
।), ६.३०.२६ (वानर, वैवस्वत यम के ५ पुत्रों में से एक - पुत्रा वैवस्वतस्याथ पञ्च कालान्तकोपमाः। गजो गवाक्षो गवयः शरभो गन्धमादनः॥), लक्ष्मीनारायण १.३८०.४९ (पुष्कर में परशुराम द्वारा शरभ रूप धारी शिव का दर्शन - हिंस्राः खादन्ति ते भक्तानस्मानवितुमर्हसि । महादेवस्तदा रूपं धृत्वा शरभमुत्कटम् ।।), २.३३.६० (कृष्ण द्वारा शरभ रूप धारण कर व्याघ्र रूप धारी वल्लीदीन असुर का वध - स्वयं शरभचरणे समागत्य ननाम तम् ।..तत्तीर्थं शारभं तत्र जातमश्वसरोवरे ।।), २.११६.८१ (राजा द्वारा गवय की हिंसा करने पर ऋषि द्वारा राजा को शरभ बनने का शाप, दत्तात्रेय व कृष्ण द्वारा शरभ की मुक्ति - शरभो भव राजेन्द्र! वनाऽऽवासोऽतिकष्टवान् । पुनर्नैवं दण्डशिक्षः करिष्यसि वधं क्वचित् ।। ), ३.८.८५ (वीरशरभनृपतेर्गृहे चतुर्भुजः प्रभुः । प्राविरासं महाशीलव्रती साधुवृषान्वितः ।।), कथासरित् ८.५.१२२ (शरभानना योगिनी का कथन - सदा प्रसन्ना शरभाननाख्या सद्योगिनी दिव्यमहाप्रभावा ।। कुत्र स्थिता त्वं वद किं च तत्र दृष्टं भवत्या भगवत्यपूर्वम् ।), द्र. सरभ sharabha
शरभङ्ग वराह १५१, वा.रामायण ३.४, ३.५(शरभङ्ग मुनि के समीप राम का आगमन, शरभङ्ग का ब्रह्मलोक गमन), लक्ष्मीनारायण १.३४२(शरभङ्ग कुण्ड तीर्थ व शरभङ्गा नदी का उल्लेख ) sharabhanga
शरमा लक्ष्मीनारायण १.५४३.७८(दक्ष द्वारा विश्वेदेवों को प्रदत्त ८ कन्याओं में से एक )
शरवण वामन ९०.२१(शरवन में विष्णु का स्कन्द नाम )
शरीर अग्नि २१४.३२(शरीर में पञ्च देवों की स्थिति), २४३(शरीर के शुभ लक्षणों का वर्णन), २४४(स्त्री शरीर के लक्षण), ३६४(शरीर के अङ्गों के पर्यायवाची शब्दों का वर्ग), ३६९.२८(शरीर में माता व पिता के अवयव, सत्त्वादि गुण, वात - पित्त आदि प्रकृति के अनुसार लक्षण), ३७०(शरीर के अवयवों का वर्णन), कूर्म १.७.४२(सृष्टि के पश्चात् ब्रह्मा द्वारा शरीर त्याग से रात्रि, सन्ध्या आदि का निर्माण), गरुड १.६३(शरीर के प्रशस्त - अप्रशस्त लक्षण), १.६५(सामुद्रिक लक्षणों का कथन), १.६८+ (बल दैत्य के शरीर से रत्नों की उत्पत्ति), २.४.१४०(शरीर में अङ्गों में विभिन्न द्रव्यों का न्यास), २.५.६८/२.१५.६८(मृतक संस्कार के पश्चात् १० दिनों में शरीर निर्माण का वर्णन), २.२०.२६/२.३०.२६(त्रिदेवों की शरीर में स्थिति), २.२२(शरीर में द्वीप, सागर, ग्रहों की स्थिति), २.२२.५२/२.३२.५२(शरीर में १४ लोकों की स्थिति), २.३०.४५/२.४०.४५(प्रेत कार्य हेतु पुत्तली निर्माण), गर्ग ३.८(गोवर्धन पर्वत के अङ्गों में तीर्थों की स्थिति, गोवर्धन पर्वत का कृष्ण के वक्ष स्थल से प्राकट्य), देवीभागवत ५.८(देवों के तेज से देवी के शरीर की उत्पत्ति), ७.३३(हिमालय द्वारा परमेश्वरी के विराट् रूप का दर्शन), ८.१७(शिशुमार चक्र पर नक्षत्रों व ग्रहों की स्थिति), नारद १.४२(पञ्चभूतों व तन्मात्राओं का संघात मात्र?, शरीर में जीव की स्थिति), पद्म १.३(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.४८.१५७(गौ के शरीर में देवों की स्थिति), २.६५, ३.६२(पुराण रूपी अङ्गों से निर्मित शरीर), ६.६.२४(शरीर में रत्नों का न्यास), ब्रह्म १.५८(शरीर शोधन विधि, नारायण मन्त्र का न्यास), १.१०८, ब्रह्माण्ड २.३.१.५७(ब्रह्मा के शरीर के अङ्गों से सृष्टि), २.३.७२.४७, ३.४.४३.५३, भविष्य १.२४+ (कार्तिकेय - प्रोक्त शरीर के शुभाशुभ लक्षण), ३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड शरीर से ग्रहों की उत्पत्ति), भागवत २.२(शरीर का अतिक्रमण करके सूक्ष्म शरीर की यात्रा), ३.१२(ब्रह्मा के शरीर से छन्दों की सृष्टि), ४.२९(पुरञ्जन नगर रूपी शरीर में रथ का रूपक), ७.१२.२३(शरीर के अङ्गों का देवों में लय), ८.५.३६(विराट् शरीर से सृष्टि), ८.७.२६(शिव शरीर का रूप), ८.२०.२१(वामन से विराट रूप), १०.४०.१३(कृष्ण का विराट् रूप), मत्स्य ३.१०(ब्रह्मा के शरीर से काम, क्रोध आदि की उत्पत्ति), मार्कण्डेय ३, ८२, लिङ्ग १.१७(शिव शरीर में ओङ्कार की स्थिति), १.८६.१३५(पञ्च भूतों के अनुसार शरीर का विभाजन), वराह १७, ३८.२(, ३९, २०६(गौ के शरीर में देवों की स्थिति), वामन ३१(वामन शरीर का विराट् रूप, शरीर में देवों की स्थिति), ९१(वामन शरीर का विराट् रूप), वायु ६.१५(वराह शरीर का यज्ञ रूप), ५७.७७(चक्रवर्ती पुरुष के शरीर के लक्षण), ५९.८(मनुष्यों व पशुओं के शरीरों का उत्सेध), १०४.७५(शरीर में व्यास - द्रष्ट तीर्थ स्थानों आदि की स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर १.२३९, २.८(शरीर के लक्षण), २.११५(शरीर के अवयवों का वर्णन), शिव ६.१५, स्कन्द १.१.१७(वृत्र के शरीर का भूमि पर पतन), १.२.४२, १.२.५०(भास्कर द्वारा कमठ से शरीर के लक्षण सम्बन्धी प्रश्न), २.१.४(पद्मावती के शरीर के लक्षण), ३.१.६(दुर्गा के शरीर का देवों के तेज से निर्माण), ३.२.६(धनु के शरीर में विश्व की प्रतिष्ठा), ४.१.११(नारद - प्रोक्त शरीर के लक्षण), ४.१.३३.१६८(लिङ्गों से निर्मित शिव शरीर), ४.१.३७(स्त्री शरीर के लक्षण), ५.३.३९(कपिला गौ के शरीर में देवों की स्थिति), ५.३.८३.१०१(गौ के शरीर में देवों की स्थिति), ५.३.१९३(नर - नारायण का विराट् रूप, अप्सराओं द्वारा स्तुति), ६.२५८(सुरभि के शरीर में देवों की स्थिति), ६.२६२(विराट् विष्णु का शरीर), हरिवंश २.११(कृष्ण के शरीर की शोभा), २.२५(अक्रूर द्वारा द्रष्ट कृष्ण शरीर), ३.१०(हरि के शरीर से ऋत्विजों की उत्पत्ति), ३.२६.५०(हयग्रीव के शरीर में देवों का निवास), महाभारत शान्ति ४७.६१, २५४, ३२०.११३, आश्वमेधिक ३५.२०, ४३.५१, ४५, ४७,योगवासिष्ठ १.१८.५(शरीर के अवयवों की वृक्ष के अवयवों से उपमा), १.२२.२८(शरीर रूपी लता के अङ्ग रूपी पत्र ; शरीर कदली, मृत्यु हस्ती), ३.७५(सूची का शरीर), ४.२३(नगर रूपी शरीर), ६.१.३२(शरीर पात), ६.२.९५(वसिष्ठ का शरीर), वा.रामायण ५.२५(हनुमान द्वारा सीता को राम के शरीर के लक्षणों का कथन), ६.४८(सीता के शरीर के लक्षण), लक्ष्मीनारायण १.४६(शरीर के अवयवों में देवों की स्थापना), १.५८(शरीर में विभूति धारण की विधि), १.६८(शरीर के चिह्नों/लक्षणों के अनुसार प्रकृति का ज्ञान), १.७४.४२(शरीर में विराट् की स्थिति, ग्रह न्यास, वायु न्यास), १.७७(नारायण बलि हेतु शरीर के अङ्गों में पिण्ड दान), १.३९८, २.१०.२२, २.२०.७६(कृष्ण के शरीर के चिह्नों का वर्णन), २.६७.११५(शरीर में दिव्य चिह्न ), २.६८.७५,२.२९.२४, २.१४१.८९, २.१४३.९९, २.१५८.५२, २.२२२, २.२२८.१०, २.२९१.६०, २.२९२.३८, ३.४९.७१, ३.६९.७०, ३.११५.७७, ३.१४२.१३, ३.१६३, ३.१७१, ३.१८६.५५, ३.२१५.६२, ३.२३५.११८, shareera/ sharira |