पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shruti, Shwaana / dog, Shweta / white, Shwetadweepa etc. are given here. श्रुतार्थ कथासरित् १.६.९
श्रुति गरुड ३.११.५(निद्रागत विष्णु के संदर्भ में श्रुतिस्वरूपा प्रकृति दवारा हरि की स्तुति), गर्ग १.४.३४(श्रुतियों द्वारा हरि से वर प्राप्ति, व्रज में गोपियां बनना), ५.१७.२१(श्रुति रूपा गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), ७.४२.२६(श्रुतियों द्वारा स्मय से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), पद्म ५.७३.३२(गोपियों के श्रुति व गोपकन्याओं के ऋचा होने का उल्लेख), भागवत १०.८७(श्रुतियों द्वारा अजित भगवान की स्तुति द्वारा प्रबोधन), वायु ६९.३३७/२.८.३३७(क्रौञ्ची के श्रुतिशालिनी होने का उल्लेख), विष्णु २.११.९(ऋक् आदि वेदत्रयी श्रुति की महिमा), शिव ७.१.१७.३०(, स्कन्द २.१.८(श्रुति देवी द्वारा रेशमी वस्त्र लेकर श्रीनिवास से समीप उपस्थित होना), ४.१.२.९७(श्रुति-स्मृति की चक्षुओं से उपमा), ४.१.३१(ऋक्, यजु आदि श्रुति, परम तत्त्व शिव का निरूपण ), ५.३.१.१५, द्र. कुम्भश्रुति, जानश्रुति, ज्ञानश्रुति, देवश्रुत, भूरिश्रुत, वेदश्रुत, सुश्रुत shruti
श्रुतिफल लक्ष्मीनारायण ३.१७३
श्रुतिशृणा वायु ३१.९
श्रेणिमती लक्ष्मीनारायण ३.३०.१२, द्र. भद्रश्रेण्य
श्रेय मत्स्य १०१.७०(श्रेय व्रत), विष्णु २.१४.७
श्रेयसी लक्ष्मीनारायण १.३०७, १.३८५.४८(श्रेयसी का कार्य)
श्रेष्ठ अग्नि ३४८.१२, नारद १.१२५.४३(विभिन्न द्रव्यों की श्रेष्ठता), पद्म ७.२२.६३(एकादशी व्रत के संदर्भ में ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं की श्रेष्ठता का कथन), स्कन्द ४.१.३५.४८(ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं में मुख्यता का कथन), लक्ष्मीनारायण १.९४.३२(संसार में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं व प्राणियों में श्रेष्ठता का वर्णन ), ३.६३.४५(साधुओं की श्रेष्ठता का कथन), shreshtha
श्रोणी ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५३(श्रोणी सौन्दर्य हेतु रम्भा स्तम्भ दान का निर्देश), स्कन्द ५.३.९०.१००, हरिवंश २.८०.३७, महाभारत शान्ति ३४७.५०(हयग्रीव की श्रोणी के रूप में गङ्गा - सरस्वती का उल्लेख ) shronee/ shroni
श्रोत्र गरुड ३.५.२०(श्रोत्राभिमानी के रूप में चन्द्र का उल्लेख - चन्द्रः श्रोत्राभिमानीति तथा ज्ञेयः खगेश्वर ।), पद्म ६.६.२५(बल असुर के श्रोत्रों से माणिक्य की उत्पत्ति का उल्लेख - अक्षिभ्यामिन्द्रनीला वै माणिक्यं श्रुतिसंभवम् ), वा.सं. २४.२९(श्रोत्राय भृङ्गाः), द्र. देह, शरीर श्रोत्रिय स्कन्द १.२.५.१०९(ब्राह्मणों के ८ भेदों में से एक, लक्षण - मात्रश्च ब्राह्मणश्चैव श्रोत्रियश्च ततः परम्॥ अनूचानस्तथा भ्रूण ऋषिकल्प ऋषिर्मुनिः॥…..एकां शाखां सकल्पां च षड्भिरंगैरधीत्य च॥ षट्कर्मनिरतो विप्रः श्रोत्रियोनाम धर्मवित्॥ ), महाभारत वन ३१३.४७(केन स्विच्छ्रोत्रियो भवति केन स्विद्विन्दते महत्।…..श्रुतेन श्रोत्रियो भवति तपसा विन्दते महत्।) shrotriya
श्रौत - स्मार्त्त ब्रह्माण्ड २.३२.३३, २.३२.४३, विष्णुधर्मोत्तर २.९५.१(स्मार्त कर्म वैवाहिक अग्नि पर तथा पिता मरण आदि काल में श्रौत कर्म वैतानिक अग्नियों में करने का निर्देश ) shrauta - smaarta
श्रौषट् लक्ष्मीनारायण २.१२४.८१(यज्ञ में श्रौषट्, स्वाहा, वषट् आदि व्याहृतियों से प्रयोज्य वस्तुओं के नाम - मात्राद्यायै स्वधा चापि श्रौषट् विश्वाधिवासिने । गन्धर्वेभ्यः किन्नरेभ्यः श्रौषट् किंपुरुषाय च ।।.....साध्वीभ्यश्च तथा श्रौषट् त्यागिनीभ्यश्च सर्वथा ।। ) shraushat
श्लक्ष्ण नारद १.५०.४४,
श्लिष्टि ब्रह्म १.१
श्लेष्मा वराह २१४+ (श्लेष्मातक सर्प तथा वन, इन्द्र द्वारा मृग रूपी शिव के श्रृङ्ग का ग्रहण), लक्ष्मीनारायण १.३७०.५३(नरक में श्लेष्मा कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ) shleshmaa
श्लोक द्र. बृहच्छ्लोक
श्व भागवत ११.१७.४८, योगवासिष्ठ ६.२.११६, द्र. शुनः, श्वान
श्वपच पद्म ६.२१७, ७.४, योगवासिष्ठ ५.४५, लक्ष्मीनारायण ३.९८.२४,
श्वपाक शिव ५.३७.५१
श्वफल्क विष्णु ४.१३.११५, हरिवंश १.३४.३(वृष्णि - पुत्र, गान्दिनी - पति, चरित्र),
श्वभ्र स्कन्द ७.३.१, द्र. गर्त
श्वश्रू स्कन्द १.२.६.१०५(श्वश्रू शब्द का निरूपण : शिशु की शुश्रूषा करने वाली),
श्वागाध हरिवंश २.१२२.३२
श्वान अग्नि २३२.१४(श्वान द्वारा शुभाशुभ शकुन का ज्ञान), गरुड १.२१७.१३(उपाध्याय व्यलीक के कारण प्राप्त योनि), मार्कण्डेय १५(दुष्कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त योनि), वामन ४७(पूर्व जन्म में कौलपति, स्थाणु तीर्थ के जल से मुक्ति), विष्णु ३.१८.६५, विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.२०(रस हरण से श्वान योनि प्राप्ति का उल्लेख), शिव ५.१०.३५, स्कन्द १.२.६२.१८(शिव द्वारा क्षेत्रपालों के लिए श्मशान के श्व: की वाहन रूप में नियुक्ति), ३.३.४, ५.३.१५९.१४, ५.३.१५९.२३, वा.रामायण ७.५९प्रक्षिप्त (सर्वार्थ सिद्धि भिक्षु द्वारा ताडन पर श्वान की राम से न्याय की याचना, श्वान के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), लक्ष्मीनारायण १.५१६.५९(पार्वती द्वारा शिव के नैवेद्य भक्षण पर सारमेय होने के शाप का वृत्तान्त), १.५७३.३२(पार्वती के शाप से ब्राह्मणों द्वारा श्वान योनि की प्राप्ति, राजा रविचन्द्र द्वारा पुण्यदान से मुक्ति ), कथासरित् १७.१.१२४, shwaana/shvaana/ shwana
श्वास शिव ५.२५.४१, स्कन्द ५.१.२३.२४,
श्वेत कूर्म १.४९.४०(श्वेत द्वीप का वर्णन), २.३६(कालञ्जर तीर्थ में काल द्वारा शिव भक्त श्वेत के पाश बन्धन पर शिव द्वारा काल का वध), गणेश १.७७.३(श्वेत द्वीप में जमदग्नि व कार्तवीर्य की कथा), नारद १.६६.११८(श्वेतोरस्क की शक्ति विदारी का उल्लेख), पद्म १.३४.३५०(श्वेत द्वारा क्षुधा से पीडित होकर स्वयं के शव का भक्षण करने की कथा), १.३६(वसुदेव - पुत्र, सुरथ -अग्रज, क्षुधा पीडा से शव भक्षण, अगस्त्य को कङ्कण दान से मुक्ति), २.९४.३४(शव भक्षण के प्रसंग में श्वेत की कथा का सुबाहु राजा की कथा से साम्य), ब्रह्म १.५६(श्वेत द्वारा कपाल गौतम के मृत पुत्र के पुन: सञ्जीवन का उद्योग, वासुदेव की स्तुति), २.२४(शिव गण द्वारा श्वेत विप्र की मृत्यु से रक्षा), २.९४, ब्रह्माण्ड १.२.१७.३१(श्वेत पर्वत पर दैत्य - दानवों के वास का उल्लेख), १.२.१९.४४(कुमुद पर्वत के श्वेत वर्ष का उल्लेख), भविष्य ४.११८, मत्स्य १७३, लिङ्ग १.११.८(श्वेत मुनि का ब्रह्मा के पार्श्व से प्राकट्य), १.२३(श्वेत कल्प में शिव के नामों का वर्णन), १.२४(प्रथम द्वापर काल में श्वेत मुनि के शिष्य गण का नाम), १.२४.१०८(२३वें द्वापर में मुनि, कालञ्जर पर्वत पर वास), १.३०(श्वेत मुनि द्वारा शिव भक्ति से काल पर जय), १.५०.११(श्वेतोदर पर्वत पर महात्मा सुपर्ण का वास), १.५२.४७(श्वेत पर्वत पर दैत्यों आदि का वास), वराह ७७, ८४, ९०, ९९(श्वेत राजा द्वारा अन्न दान न करने के कारण शव भक्षण), वामन २५, ५७.१०१(श्वेत तीर्थ द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु २२.९(श्वेत लोहित कल्प का नाम व वर्णन), २२.२०, २३.६३(श्वेत कल्प का वर्णन), २३.२०३(२३वें द्वापर में शिव अवतार, कालञ्जर पर्वत पर तप), विष्णुधर्मोत्तर १.२३६(शिव द्वारा श्वेत ऋषि की काल से मुक्ति), शिव ३.४, ७.१.५, स्कन्द १.१.३२(शिव - भक्त श्वेत की काल से रक्षा), १.२.२९.८९ (गङ्गा द्वारा उत्सर्जित शिव वीर्य से श्वेत पर्वत की उत्पत्ति का उल्लेख), २.१.७, २.२.३७.२७(श्वेत राजा द्वारा भगवत्कृपा प्राप्ति), २.४.२.३२टीका, ३.१.३९(श्वेत मुनि द्वारा राक्षसी पर शिला क्षेपण, शिला व राक्षसी की मुक्ति), ६.१०३(श्वेत राजा द्वारा स्वर्ग से आकर स्वदेह का भक्षण, अगस्त्य से संवाद, आनर्त तीर्थ की महिमा), ७.१.१०५.४५(प्रथम कल्प का नाम), वा.रामायण ६.२६.२४(सारण द्वारा राम को श्वेत वानर का परिचय), ६.३०.३२(वानर, सूर्य - पुत्र), ७.७७(राजा श्वेत द्वारा शव भक्षण की कथा, श्वेत द्वारा अगस्त्य को आभूषण का दान ), ७.७८, लक्ष्मीनारायण १.३८५.१०३(श्वेत द्वीप में कृष्ण के चतुर्भुज होने का उल्लेख), १.४०५, भरतनाट्य १३.२६(श्वेत पर्वत पर दैत्य-दानवों के वास का उल्लेख), shweta/shveta
श्वेतार्क लिङ्ग १.८१.३५(श्वेतार्क पुष्प पर प्रजापति ब्रह्मा की स्थिति का उल्लेख )
श्वेतकर्ण ब्रह्म १.११
श्वेतकेतु शिव ३.५, स्कन्द ४.२.९७.२१४(श्वेतकेतु द्वारा लाङ्गलीश लिङ्ग की आराधना से मोक्ष प्राप्ति), ७.१.४०(श्वेतकेतु लिङ्ग का माहात्म्य, भीमसेन द्वारा पूजा ), लक्ष्मीनारायण २.३१, shwetaketu/shvetaketu
श्वेतगङ्गा वराह १४५
श्वेतद्वीप गर्ग ५.१७.२६(श्वेतद्वीप वासी गोपियों द्वारा कृष्ण विरह पर व्यक्त प्रतिक्रिया), नारद १.६२.३८(शुकदेव द्वारा बाधाओं को पार कर श्वेत द्वीप के दर्शन ), भविष्य ४.६६, वराह ६६, लक्ष्मीनारायण १.१२८, १.१७९, १.५२२, १.५६८, २.१४०.१३, ३.४५.२०, कथासरित् ९.४.२१ shwetadweepa/shvetadweepa/ shwetadwipa
श्वेतभद्र वा.रामायण १.४०,
श्वेतमाली स्कन्द ७.४.१७.९,
श्वेतमूर्द्धा स्कन्द ७.४.१७.९
श्वेतमुनि कथासरित् १२.५.३३६
श्वेतरश्मि कथासरित् ७.२.१३, ७.२.११२
श्वेतलोहित वायु २२.९,
श्वेतशिख शिव ३.४
श्वेता पद्म ६.१३७(साभ्रमती की धारा श्वेता का माहात्म्य), वा.रामायण ३.१४.२६, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.१२८,
श्वेतानन वामन ५७.८०(वेणा नदी द्वारा कुमार को श्वेतानन गण प्रदान का उल्लेख),
श्वेताश्व कूर्म १.१४.३२(श्वेताश्वतर मुनि द्वारा सुशील को ज्ञान दान), शिव ३.४, लक्ष्मीनारायण २.७८.५१(श्वेताश्वतर ब्रह्मर्षि द्वारा शिष्य सुशील को प्रदत्त वैष्णव संन्यास विषयक उपदेश का वर्णन ) shwetaashva/ shwetashva
षट् लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(षडश्वों की अशुभता का उल्लेख), वास्तुसूत्रोपनिषद २.१७(आकर्षणी विद्या के षट्कोणिक होने का उल्लेख)
षट्पदी गरुड २.२.२४(विष्णु, एकादशी, गीता, तुलसी, विप्र, धेनु का षट्पदी रूप में कथन), योगवासिष्ठ ४.४७.७८(इन्द्र रूपी षट्पद द्वारा स्वर्ग पंकज का भोग करने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.७३.३६(विष्णु, एकादशी, गंगा आदि षट्पदी के नाम )
Further references on shatpadi
षट्पुर हरिवंश २.८२(असुरों के निवास स्थान षट्पुर का परिचय, ब्रह्मा से वर), २.८३+ (षट्पुर में ब्रह्मदत्त के यज्ञ में असुरों का विघ्न, कृष्ण का आगमन आदि ) shatpura
षडज वायु २१.३५/१.२१.३२(षड्ज : १६वें कल्प का नाम, षड्ज कल्प में ६ ऋतुओं की उत्पत्ति के कारण षड्ज संज्ञा ?) shadaja |