पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shubha / holy, Shumbha, Shuukara, Shoodra / Shuudra, Shuunya / Shoonya, Shoora, Shoorasena, Shuurpa, Shuurpanakhaa, Shuula, Shrigaala / jackal etc. are given here. शुभ नारद १.११६.४१(आश्विन् शुक्ल सप्तमी को शुभ सप्तमी), पद्म १.२१.३०५(शुभ सप्तमी विधि), १.५०.६१(शुभा पतिव्रता द्वारा नरोत्तम ब्राह्मण को शिक्षा), भविष्य ४.१३(शुभोदय वैश्य द्वारा भद्र व्रत के पालन से स्वर्णष्ठीवी बनना), ४.१६७(शुभावती : हव्यवाहन नृप की भार्या, पिप्पलाद द्वारा शुभावती को आपाक?आंवां दान विधि का कथन), मत्स्य ८०(शुभ सप्तमी व्रत, आश्विन् शुक्ल सप्तमी), वराह ३६शुभदर्शन, ५५, स्कन्द ४.२.९७.७७(शुभेश्वर लिङ्ग पर कम्पिल द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७४१७२५शुभानन, लक्ष्मीनारायण २.१७६.४१ (ज्योतिष में योग), कथासरित् ८.२.३७८शुभङ्कर, १०.१.२५शुभदत्त, १२.५.२६०शुभनय, १८.४.९२(गज द्वारा शुभ रूप धारण करने का वृत्तान्त ) shubha
शुभाङ्ग गर्ग ७.२७.८(शुभाङ्ग : निष्कौशाम्बी पुरी के अधिपति शुभाङ्ग द्वारा प्रद्युम्न की आधीनता स्वीकार करना), हरिवंश २.६१(रुक्मी - पुत्री शुभाङ्गी द्वारा स्वयंवर में प्रद्युम्न का वरण ), २.१२१शुभाङ्गी, shubhaanga/ shubhanga
शुभ्र गर्ग ७.५.७(प्रद्युम्न द्वारा कच्छ देश के राजा शुभ्र पर विजय), ७.२७शुभ्राङ्ग, ब्रह्म २.९३, भागवत ८.५,
शुम्भ गणेश २.७६.१३(विष्णु व सिन्धु के युद्ध में शुम्भ का विष्णु से युद्ध), देवीभागवत ५.२१+ (शुम्भ द्वारा तप, ब्रह्मा से अवध्यता वर की प्राप्ति, देवों को त्रास), ५.३०, ५.३१(कालिका द्वारा शुम्भ का वध), पद्म ५.१०४, ६.६.९१(जालन्धर - सेनानी, वसुओं से युद्ध), ६.१२.२(जालन्धर - सेनानी, नन्दी से युद्ध), ६.१०१(जालन्धर - सेनानी, गणेश से युद्ध), भविष्य ३.४.१५, ४.५८, भागवत ८.१०.३१(शुम्भ व निशुम्भ का भद्रकाली से युद्ध), मत्स्य १४८.५५(शुम्भ असुर के वाहन का कथन), १५२.२५(तारक - सेनानी, विष्णु से युद्ध), मार्कण्डेय ८५, ८८(शुम्भ का वध), वामन ५५(शुम्भ - निशुम्भ का रक्तबीज से परिचय), ५६(शुम्भ - निशुम्भ का वध), शिव २.५.२४.१३(शिव द्वारा शुम्भ - निशुम्भ को गौरी के हाथों मरण का शाप), ५.४७(सरस्वती द्वारा शुम्भ का वध), ७११७, ७.१.२४(शुम्भ की उत्पत्ति), स्कन्द १.२.१६.२०(शुम्भ के महावृक केतु होने का उल्लेख), १.२.१६.२७(शुम्भ के कालमुञ्च महामेघ वाहन का उल्लेख), २.४.२२.७, ७.३.२४(कात्यायनी द्वारा शुम्भ का वध), लक्ष्मीनारायण १.१६५, १.३२८.७(शुम्भ के लम्बोदर से युद्ध का उल्लेख ), द्र. जलन्धर shumbha
शुल्ब वास्तुसूत्रोपनिषद ४.९(शुल्ब व शिल्प में साम्य)
शुष्क नारद २.१.३(शुष्क व आर्द्र पापेन्धन की व्याख्या), ब्रह्माण्ड २.३.५७(शुष्क मुनि द्वारा परशुराम से गोकर्ण क्षेत्र के उद्धार की प्रार्थना), स्कन्द ४.२.६८.७२(शुष्कोदरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.९४.१७, ३.९४.३०, shushka
शुष्करेवती मत्स्य १७९, वामन ५५(शुष्करेवती द्वारा चण्ड - मुण्ड के शिर से आभूषण का निर्माण ), विष्णुधर्मोत्तर १.२२६, shushkarevatee/ shushkarevati
शुष्म ब्रह्माण्ड १.२.१३.९(शुचि व शुक्र मासों की शुष्मी संज्ञा), भागवत १०.४६.९, लिङ्ग १.२४.१०३(शुष्मायन : २२वें द्वापर में व्यास ), विष्णु २.४.३८शुष्मी, शिव ३.५shushma
शूकर गरुड १.२१७.१९(गुरु भार्या गमन से शूकर योनि की प्राप्ति का उल्लेख), गर्ग ७.३५, देवीभागवत ३.११, ७.१८, पद्म २.४२, २.४६(इक्ष्वाकु - पत्नी सुदेवा से शूकरी द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन), ६.११९(शूकर क्षेत्र का माहात्म्य), मार्कण्डेय १५.१२(दुष्कृत्य के फलस्वरूप शूकर योनि की प्राप्ति), वराह ९८(विष्णु रूपी शूकर का इन्द्र रूपी व्याध द्वारा पीछा, सत्यतपा द्वारा शूकर की रक्षा), १३७(सौकरव तीर्थ में शृगाली व गृध्र का वृत्तान्त ), शिव ३.३९, स्कन्द ५.३.१५९.१४, हरिवंश ४.४.३३, कथासरित् ५.३.१७२, द्र. वराह shuukara/shookara/ shukara
शूद्र गरुड ३.२२.७९(शूद्र में संकर्षण की स्थिति का उल्लेख), पद्म १.९, १.३५, १.५३, ४.१४, ६.५७(शूद्र द्वारा तप के कारण मान्धाता के राज्य में अनावृष्टि), ब्रह्म १.११५(शूद्र द्वारा सदाचार से द्विजत्व की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त १.१०, ब्रह्माण्ड १.२.७.१६७(सत्शूद्रों की गन्धर्व लोक में स्थिति), भविष्य ३.४.२३.९९(शूद्र वर्ण द्वारा दैत्यों व दानवों की तृप्ति का उल्लेख), भागवत ११.१७.१९, वराह १२८.२५, विष्णु ६.२.१९(कलियुग में शूद्र का महत्त्व), शिव ५.३६.५८, स्कन्द २.५.१२, ३.१.१०, ३.२.३९, ५.३.१८१.१६, ५.३.२००.६, ६.६५(शूद्रेश्वर का माहात्म्य, सुहय राजा के कपाल का चूर्ण करके गङ्गा - यमुना के मध्य में क्षेपण से प्रेतों की मुक्ति, लिङ्ग स्थापना), ६.९२, ६.१३६, ६.१९८, ६.२३९.३१(जन्म से शूद्र उत्पन्न होकर संस्कार से द्विज बनने का उल्लेख), ६.२४१(सत्शूद्र के लक्षण व धर्म), ६.२४२.२८(शूद्र द्वारा सभी कर्म मन्त्ररहित करने का निर्देश ; गृहस्थ के शूद्र होने का उल्लेख?), ६.२४२.३२(शूद्र की १८ प्रकृतियों का कथन), ७.१.१२९.१२(शूद्रान्न भक्षण के दोषों का वर्णन ), महाभारत शान्ति २९३, अनुशासन १०, आश्वमेधिक ९२दाक्षिणात्य पृ. ६३४३, लक्ष्मीनारायण १.२५७, १.३२१, shoodra/shuudra/ shudra
शूद्रक स्कन्द १.२.४०.२५०(कलियुग में शूद्रक राजा द्वारा चर्चिता की आराधना से सिद्धि प्राप्ति ), कथासरित् १२.११.५, shuudraka/shoodraka/ shudraka
शून्य अग्नि २१४.३९(मन्त्र रहस्य के संदर्भ में तीन शून्यों की महिमा का कथन), ३४८.७, ब्रह्माण्ड ३.४.२१.३(भण्डासुर के शून्यक पुर का कथन), ३.४.२२.२२(भण्डासुर के शून्यक पुर की रक्षा का उद्योग), ३.४.२९.२१(भण्डासुर का शून्यक नगर), शिव २.१.६.५२(विष्णु के अङ्गों से नि:सृत जलधारा द्वारा शून्य के अभिव्याप्त होने का उल्लेख), महाभारत अनुशासन ७५.२४, योगवासिष्ठ ६.२.१०५.३८(चिच्छून्य की प्राप्ति में कठिनाई का दृष्टान्तों सहित कथन ) shoonya/shuunya/ shunya
शूर गणेश २.५५.३०(नरान्तक के दूतों शूर व चपल का गणेश वध हेतु काशी में आगमन, गणेश द्वारा जीवन दान), नारद १.६६.१३१(शूर गणेश की शक्ति जम्भिनी का उल्लेख), पद्म ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), ७.२३(शौरि ब्राह्मण द्वारा सुप्राज्ञा से एकादशी व्रत के माहात्म्य का श्रवण), भविष्य ३.४.२२.१६, २४(शूर/सूर - मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में बिल्वमङ्गल, वेश्या-पारग), भागवत ११.१९.३७(स्वभाव विजय के शौर्य होने का उल्लेख), वामन ९०.३१(शूरपुर में विष्णु का शूर नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६७(शूर के गुणों का वर्णन), शिव ५.३८.५४(सगर के अवशिष्ट पुत्रों में से एक), हरिवंश २.९३.२१(शूर यादव द्वारा रावण का वेश धारण), योगवासिष्ठ १.२७.९(शूरता का निरूपण), ३.३०, ३.३१.२४(शूर की परिभाषा ), लक्ष्मीनारायण २.१२९शूरजार, कथासरित् ९.२.९२शूरपुर, १०.४.३शूरवर्मा, १२.१.३३शूरदत्त, १२.१६.१२शूरदेव, द्र. भावशूर shoora/shuura/ shura
शूरसेन कूर्म १.२२(कार्तवीर्य अर्जुन - पुत्र, जयध्वज - भ्राता, जयध्वज से आराध्य देव विषयक विवाद, विदेह दानव से युद्ध), गणेश १.५६.६, १.७५.१(शूरसेन द्वारा इन्द्र से संकष्ट चतुर्थी व्रत की महिमा का श्रवण कर स्वयं व्रत धारण, देवलोक गमन), गरुड १.५५.१०(मध्य देश का नाम), गर्ग ७.२.१८(शूरसेन द्वारा प्रद्युम्न को छत्र, चंवर आदि भेंट), १.७.२३(प्राण वसु का अंश), ब्रह्म २.४१(प्रतिष्ठानपुर के राजा शूरसेन से नाग पुत्र की उत्पत्ति, पुत्र के भोगवती से विवाह की कथा), ब्रह्माण्ड २.३.४५+ (कार्तवीर्य - पुत्र, जमदग्नि की हत्या पर परशुराम द्वारा शूरसेन का वध), भविष्य ३.२.१५(राजा शूरसेन द्वारा रामगाथा श्रवण से जन्मान्तर में जीमूतवाहन बनना), वराह ६३(कृष्ण अष्टमी व्रत से शूरसेन को वसुदेव पुत्र की प्राप्ति ), वा.रामायण ७.७०, कथासरित् २.२.१६२, ६.८.२०६, १०.१०.१७३, १६.१.२५, shuurasena/shoorasena/ shurasena
शूर्प नारद १.६६.१२८(शूर्पकर्ण की शक्ति उमा का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त २.३१.३३(शूर्प नरक प्रापक पाप का कथन), स्कन्द ६.२२.२६(दिति व शक्र का प्रसंग ) shoorpa/shuurpa/shurpa
शूर्पणखा गर्ग ५.११.२(नाक - कान कटने पर शूर्पणखा का तप से कृष्ण के काल में कुब्जा बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६२, ४.११५.९४(शूर्पणखा का कुब्जा के रूप में अवतरण), विष्णुधर्मोत्तर १.२२०, वा.रामायण ३.१७(पञ्चवटी में शूर्पणखा का राम के निकट आगमन), ५.२४, ७.१२.२(रावण - भगिनी, विद्युज्जिह्व से विवाह ), लक्ष्मीनारायण १.३७६.९० shoorpanakhaa/ shuurpanakhaa/ shurpanakha शूर्पारक ब्रह्माण्ड २.३.५८.२०(परशुराम के स्रुवा क्षेप से शूर्पारक क्षेत्र का निर्माण, पूर्वकाल में गोकर्ण क्षेत्र ), वराह १५०, वामन ९०.२५(शूर्पारक में विष्णु की चतुर्बाहु नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख ) shoorpaaraka/ shuurpaaraka/ shurparaka
शूल अग्नि १०२(प्रासादध्वज में शूलारोपण विधान), २५२.९(शूल अस्त्र के ६ कर्म), पद्म ३.१८, ब्रह्म २.४५.११(रसातल से दैत्यों के निष्कासन हेतु शेष द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति), ब्रह्मवैवर्त्त २.३०.११४(नरक में शूल कुण्ड प्रापक दुष्कर्म), २.३१.१६(शिवलिङ्ग की पूजा न करने पर शूलप्रोत नरक प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.४०.५७(दत्तात्रेय से प्राप्त शूल द्वारा कार्त्तवीर्य अर्जुन द्वारा परशुराम पर प्रहार, परशुराम का मूर्च्छित होना), मत्स्य १९१.३(शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य, शिव के त्रिशूल पतन का स्थान), मार्कण्डेय ७८.१७/७५.१७(त्वष्टा द्वारा सूर्य के कर्तित तेज से शिवादि के शूलादि अस्त्रों का निर्माण), वराह २००.५०(शूलवह पर्वत के गुण का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.२००.१(शिव द्वारा मधु असुर को स्वशूल से शूल निकाल कर देना, मधु-पुत्र लवण द्वारा शूल से मान्धाता के वध का उल्लेख), शिव ५.१.१९(उपमन्यु द्वारा द्रष्ट रुद्र के शूल के स्वरूप का कथन), स्कन्द ४.२.८२.९६(अमित्रजित् राजा द्वारा कंकालकेतु राक्षस के अंक से त्रिशूल का ग्रहण कर राक्षस के वध एवं मलयगन्धिनी कन्या के पाणिग्रहण का वृत्तांत), ४.२.९७.५३(शूलेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३४.७२(कृत्तिकाओं द्वारा स्कन्द को शूल प्रदान करने का उल्लेख), ५.१.३७.३(त्रिशूल द्वारा अन्धक को आहत करने के पश्चात् भोगवती में पापप्रक्षालन स्थल की शूलेश्वर नाम से ख्याति), ५.२.५१(अन्धक वध के पश्चात् शूल द्वारा स्थापित शूलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ५.३.६.२८(तपोरत शिव के शूलाग्र से पतित बिन्दुओं से नदी की उत्पत्ति का उल्लेख), ५.३.४४+ (शूलभेद तीर्थ का माहात्म्य, शिव द्वारा अन्धक का शूल से भेदन करने की कथा), ५.३.४९.११(शूलाघात से भृगुपर्वत का छिन्न होना, शूल का पापमुक्त होना), ५.३.५१(शूलभेद तीर्थ में दान धर्म की प्रशंसा), ५.३.५५ (शूलभेद तीर्थ की गयाशिरतीर्थ से तुलना), ५.३.५८(भानुमती द्वारा शूलभेद में तप करके नगशृंग से पात करना), ५.३.१६९.२४+(शम्बर असुर द्वारा कामप्रमोदिनी कन्या का हरण, माण्डव्य ऋषि के तप का स्थान), ५.३.१९८.४५(माण्डव्य के शूल के रुजारहित, अमृतस्रावि होने का कारण), ५.३.१९८.९१(शूलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : माण्डव्य ऋषि का शूल से अवरोहण, शूल मूल से शिव व अग्र से शूलेश्वरी देवी का प्राकट्य, तीर्थ अनुसार देवी के १०८ नाम), ६.१३६.१७(शूल स्पर्श का माहात्म्य, माण्डव्य के शूलारोपण की कथा, माण्डव्य द्वारा यम को शाप आदि), ७.१.१०.६(शूलेश्वर तीर्थ का वर्गीकरण – पृथिवी), वा.रामायण ७.६१.६(मधु असुर द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति), ७.६७.२१(लवण द्वारा शूल से मान्धाता का वध), ७.६९.३४(शत्रुघ्न द्वारा दिव्य शर से लवण का वध, लवण के शूल की शिव को प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.३७०.११८(नरक में तप्तशूल कुण्ड प्रापक कर्मों का उल्लेख ), १.३९१.४९(कुष्ठी कौशिक द्वारा शूल्यारोपित माण्डव्य को कष्ट देना, माण्डव्य का सूर्योदय पर मृत्यु का शाप, सती द्वारा सूर्योदय का रोधन), कथासरित् ५.२.१३८(अशोकदत्त द्वारा शूलारोपित तृषित पुरुष को जल देने का प्रयास, स्त्री के नूपुर ग्रहण करना), १८.५.११६(स्त्री द्वारा शूलारोपित चोर का आलिङ्गन, चोर द्वारा दांतो से स्त्री की नासिका का छेदन), द्र. त्रिशूल shoola/shuula/ shula
शूलपाणि पद्म ३.२६, वामन ९०.८(हिमाचल में विष्णु का शूलबाहु नाम से वास), स्कन्द ७.४.१७.२५शूलहस्त
शूली नारद १.६६.९२(शूली विष्णु की शक्ति विजया का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.११२(२४वें द्वापर में मुनि), वायु २३.२०६(२४वें द्वापर में शिव अवतार), शिव ३.५, लक्ष्मीनारायण ३.२३१
शृगाल ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२१(वासुदेव नामक शृगाल राजा का कृष्ण द्वारा मोक्ष), भविष्य ३.३.१२.१२४(कलियुग में शृगाल का जम्बुक राजा के रूप में जन्म), वराह १३७(शृगाली का सौकरव तीर्थ में मृत्यु से राजपत्नी बनना, शिरोवेदना प्रसंग), विष्णु ३.१८.७२, विष्णुधर्मोत्तर २.१२०.१४, स्कन्द ३.१.३४(शृगाल द्वारा वानर से पूर्व जन्म के कर्मों के वृत्तान्त का कथन, सिन्धुद्वीप ऋषि द्वारा मुक्ति के उपाय का कथन, पूर्व जन्म में वेदशर्मा विद्वान), ६.८९, हरिवंश २.३९.५१(करवीरपुर के राजा शृगाल का चरित्र), २.४४(कृष्ण द्वारा शृगाल का वध), २.४५.४५(पद्मावती का पति, शक्रदेव - पिता ), महाभारत शान्ति १११, ११२, १५३, १८०.२२, लक्ष्मीनारायण १.३८६, १.५४८, १.५७७, ४.६७, कथासरित् ६.३.१०६, १२.१.१७, shrigaala/ shrigala |