पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shringa / horn, Shringaar, Shringi, Shesha, Shaibyaa, Shaila / mountain, Shona, Shobhaa / beauty, Shaucha, Shmashaana etc. are given here. Veda study on Shringar/Shringaara Veda study on Shesha / remainder शृङ्खली पद्म २.५३.९८(कर्णमूल में कृमि का नाम), लक्ष्मीनारायण २.२२५.९२(ईशानियों को शृङ्खला व रशना दान का उल्लेख ) shrinkhalaa
शृङ्ग पद्म १.१९.२५२(तृष्णा की वृद्धि की रुरु के शृङ्ग के वर्धन से उपमा), ३.२१.३२(शृङग तीर्थ में स्नान का संक्षिप्त माहात्म्य), ब्रह्माण्ड २.३.१०.८७(एकशृङ्गा : काव्य पितरों की कन्या, अन्य नाम योगोत्पत्ति, भृगु/शुक्र-पत्नी), ३.४.२५.२९, ९८ (तीक्ष्णशृङ्ग : ललिता देवी के बन्धन हेतु भण्डासुर द्वारा प्रेषित सेनानियों में से एक , सर्वमङ्गलिका नित्या देवी द्वारा तीक्ष्णशृङ्ग के वध का उल्लेख), भविष्य ३.४.८.९२(वृषभ के ४ शृङ्गों के रूप में सुबन्त आदि का उल्लेख), भागवत ५.२.११(पूर्वचित्ति अप्सरा के कुचों की शृङ्गों से उपमा, शृङ्गों के सुरभियुक्त होने का उल्लेख), मत्स्य १२१.६१(हिरण्यशृङ्ग- - कुबेर - अनुचर, सुरभि वन में वास), वराह ८१.४(एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्वक्त्र/प्रजापति के वास का उल्लेख), २१५.३६(मृग रूप धारी एकशृङ्ग शिव के शृङ्ग के तीन भाग होना), २१५+ (इन्द्र द्वारा मृग रूपी शिव के शृङ्ग का ग्रहण, श्लेष्मातक वन में स्थापना, रावण द्वारा शृङ्ग को उखाडना), वामन ५७.६७(अतिशृङ्ग : विन्ध्याचल द्वारा स्कन्द को प्रदत्त गण), शिव १.१७.८६(क्षमा शृङ्ग वाले वृषभ का कथन), ५.२६.४०(९ प्रकार के नादों में से एक), ५.२६.४६(शृङ्गनाद का उच्चाटन, मारण आदि अभिचारों में प्रयोग का निर्देश), स्कन्द ३.२.५.२२(शृङ्गवान् द्वारा वल्मीक को चिनने की उपमा), ३.२.६.६(वेद रूपी गौ के इष्टापूर्त विषाण होने का उल्लेख), ४.१.२.७८(गौ के शृङ्गाग्र में सर्व तीर्थों की स्थिति), ५.१.४० (कनकशृङ्गा- अवन्तिका नगरी के ४ नामों में से एक, श्री हरि द्वारा कनकशृङ्गा पुरी का निर्माण करके ब्रह्मा व शिव को वास हेतु प्रदान करना ), ५.३.३९.३०(कपिला गौ के शृङ्गों में नरनारायण-द्वय तथा शृङ्गमध्य में पितामह की स्थिति का उल्लेख), ५.३.५३ ( दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की चित्रसेना द्वारा हत्या, दीर्घतपा परिवार के मरण आदि का वर्णन ), ५.३.८३.१०४(गौ के शृङ्गाग्र में शक्र के वास का उल्लेख), ५.३.९०.१०१(स्वर्णशृङ्गी गौ के दान का निर्देश), ५.३.२१५(शृङ्गी तीर्थ का माहात्म्य), ६.९(हिमालय – पुत्र रक्तशृङ्ग द्वारा इन्द्र के आदेश से हाटक क्षेत्र के बिल को पूरित करने के लिए जाना), ६.१२२.१२(इन्द्र द्वारा महिष रूप धारी केदारेश्वर शिव से त्रिशृङ्ग दैत्य को मारने की प्रार्थना), ७.१.१७.९८(अष्ट शृङ्ग मेरु पूजा विधि), ७.१.२४.१७१( शिखण्डिगण के शाप की निवृत्ति हेतु गन्धर्वसेना का पिता के साथ गोशृङ्ग मुनि के आश्रम में गमन, गोशृङ्ग - निर्दिष्ट सोमवार व्रत तथा शिवाराधना से शाप से मुक्ति का वर्णन ),, ७.१.५४.३ ( शिखण्डिगण के शाप की निवृत्ति हेतु गन्धर्वसेना का पिता के साथ गोशृङ्ग मुनि के आश्रम में गमन, गोशृङ्ग - निर्दिष्ट सोमवार व्रत तथा शिवाराधना से शाप से मुक्ति का वर्णन ), ७.१.३५६(शृङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, ऋष्यशृङ्ग की पापों से मुक्ति ), महाभारत शान्ति ३४२.९२/३५२.२६(एकशृङ्ग वराह द्वारा भूमि के उद्धार का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१०(राजा ब्रह्मसविता व उसकी पत्नी भूरिशृङ्गा के जन्मान्तर में सूर्य व संज्ञा बनने की कथा), १.३८५.४९(भूरिशृङ्गा का कार्य – भुजाओं में कटक देना), २.१०९.९९शृङ्गशेक, २.२६४.८१शृङ्गधर,कथासरित् ७.३.५८(निश्चयदत्त द्वारा मन्त्र द्वारा शृङ्गोत्पादिनी यक्षिणी को वश में करने की कथा), द्र. ऋक्षशृङ्ग, ऋष्यशृङ्ग, एकशृङ्ग, कनकशृङ्ग, गोशृङ्ग, तीक्ष्णशृङ्ग, त्रिशृङ्ग, भूरिशृङ्ग, मृगशृङ्ग, रक्तशृङ्ग, शतशृङ्ग, हिरण्यशृङ्ग shringa ऋष्यशृङ्ग ब्रह्मवैवर्त्त २.४.५५(विभाण्डक द्वारा मेरु पर ऋष्यशृङ्ग को सरस्वती मन्त्र प्रदान का उल्लेख), २.५१.३५ ( ऋष्यशृङ्ग ऋषि द्वारा सुयज्ञ नृप हेतु १६ कृतघ्नता दोषों का निरूपण ), भागवत ८.१३.१५ ( आठवें सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), ९.२३.८ ( विभाण्डक मुनि व हरिणी - पुत्र, रोमपाद के राज्य में ऋष्यशृङ्ग के प्रवेश पर वर्षा होना व ऋष्यशृङ्ग का शान्ता से विवाह, ऋष्यशृङ्ग की नाट्य आदि में आसक्ति ), मत्स्य ४८.९६ ( ऋष्यशृङ्ग की कृपा से दशरथ को चतुरङ्ग पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), महाभारत द्रोण १०६.१६(भीमसेन के ऋष्यशृङ्गि राक्षस से युद्ध का उल्लेख), वायु १००.११ ( आठवें मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ), विष्णु ३.२.१७ ( वही), वा.रामायण १.९+ ( मुनि, विभाण्डक - पुत्र, ऋष्यशृङ्ग के अङ्ग देश में आगमन पर वृष्टि, शान्ता से विवाह, दशरथ के अश्वमेध में आगमन ), लक्ष्मीनारायण १.४८५ ( राजा चित्रसेन द्वारा मृग रूप धारी दीर्घतमा - पुत्र ऋष्यशृङ्ग की हत्या, ऋष्यशृङ्ग के शोक में पिता आदि परिवार जनों की मृत्यु , नर्मदा में अस्थि क्षेप से दिव्य रूप प्राप्ति ; तु. स्कन्द ५.३.५२+ में दीर्घतपा - पुत्र ऋक्षशृङ्ग की कथा ) एकशृङ्ग वराह ८१.४ ( मेरु के परित: स्थित एकशृङ्ग पर्वत पर चतुर्मुख ब्रह्मा के वास का कथन ), वायु ३६.२४ ( मेरु के दक्षिण में स्थिति एक पर्वत ), महाभारत शान्ति ३४२.९२(एकशृङ्ग वराह द्वारा भूमि के उद्धार का उल्लेख), एकशृङ्गा ब्रह्माण्ड २.३.१०.८७ ( द्विजों द्वारा पूजित पितरों की मानसी कन्या योगोत्पत्ति का उपनाम, शुक्र - भार्या, भृगु वंश ), हरिवंश १.१८.५८ ( सुकाली नामक पितरों की मानसी कन्या, स्वर्ग में गौ नाम, शुक - भार्या, साध्य वंश ) त्रिशृङ्ग गर्ग ७.२९.१८ (प्रद्युम्न का सैन्य सहित त्रिशृङ्ग पर्वत के देशों में गमन, शृङ्गधारी मनुष्यों तथा त्रिशृङ्ग के पार्श्व में स्वर्ण चर्चिका नगरी के दर्शन), ब्रह्म १.१६.५०(मेरु के उत्तरी मर्यादा पर्वतों में से एक), भागवत ५.१६.२७(मेरु के उत्तर में स्थित २ पर्वतों में से एक), मत्स्य २००.१५(त्रैशृङ्गायण : त्र्यार्षेय प्रवर के संदर्भ में एक ऋषि का नाम), वायु ३६.२९(मानसरोवर/मेरु? के पश्चिम में स्थित पर्वतों में से एक), विष्णु २.२.४४(मेरु की उत्तर दिशा के २ वर्ष पर्वतों में से एक ) । शतशृङ्ग गर्ग ३.९.३२(गोवर्धन/शतशृङ्ग पर्वत का कृष्ण के तेज से प्राकट्य), ब्रह्मवैवर्त्त २.७.१०१(राधा द्वारा शतशृङ्ग पर्वत पर तप का कथन), लिङ्ग १.५०.१०(शतशृङ्ग पर्वत पर यक्षों का वास), वराह ९४.५०(शतशृङ्ग पर्वत पर महिष का वध), स्कन्द १.२.३९.६८(भरत - पुत्र, कुमारी आदि ९ सन्तानों का पिता )
शृङ्गली पद्म २.५३.९९(नेत्र में शृङ्गली कृमि की स्थिति का उल्लेख),
शृङ्गभुज कथासरित् ७.५.१, ७.५.२०(शृङ्गमांसरस से उत्पन्न होने के कारण शृङ्गभुज नाम प्राप्ति की कथा), ७.५.१५७(शृङ्गभुज के राक्षसकुमारी रूपशिखा से विवाह आदि का वृत्तान्त)
शृङ्गवान् ब्रह्माण्ड १.२.१७.३६(शृङ्गवान् पर्वत पर पितरों के वास का उल्लेख), १.२.२१.१३८(शृङ्गवान् पर्वत के तीन शिखरों का कथन), मत्स्य १२१.२१(शृङ्गवान् पर्वत पर धूम्रलोचन शिव का वास, शैलोदा नदी का उद्गम स्थल), लिङ्ग १.५२.४७(शृङ्गवान् पर्वत : पितरों का वास स्थान), वायु ५०.१९०(शृङ्गवान् पर्वत की महिमा ), भरतनाट्य १३.२७(पितरों के शृङ्गवान् पर वास का उल्लेख), shringavaan/ shringavan
शृङ्गवेरपुर देवीभागवत ३.१८
शृङ्गार गर्ग ५.१७.४(शृङ्गारप्रकरा गोपियों द्वारा कृष्णविरह पर प्रतिक्रिया), ७.२६.५१(वसन्तलतिका के राजा शृङ्गारतिलक की प्रद्युम्न - सेनानी गद से पराजय), ब्रह्माण्ड ४.३५.५९, वराह २००.५२(नरक में शृङ्गारक वन में प्राप्त होने वाली यातनाओं का कथन), स्कन्द ७.१.३५९(शृङ्गारेश्वर का माहात्म्य, हरि द्वारा गोपियों सहित शृङ्गार का स्थान ), लक्ष्मीनारायण २.२९२.३८, कथासरित् १८.४.३१७(शृङ्गारवती - रूपवती की दो सखियों में एक), shringaara/ shringara Veda study on Shringar/Shringaara
शृङ्गी भविष्य ३.४.२१.१४(कलियुग में कण्व कुल में सरस्वती की कृपा से जन्मे १६ पुत्रों में से एक), भागवत १.१८(शमीक - पुत्र, परीक्षित् को शाप), मत्स्य २, १४५.९५(शृङ्गी द्वारा सत्य प्रभाव से ऋषिता प्राप्ति का उल्लेख), मार्कण्डेय २, स्कन्द १.२.१३, २.१.११.११(शमीक-पुत्र शृङ्गी द्वारा परीक्षित को शाप देने की कथा), ५.३.२१५(शृङ्गि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.२७१.४३३(लवण - निर्मित शृङ्गी पर्वत दान से गृध्र की मुक्ति का कथन), ७.१.३५६(शृङ्गेश्वर का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५७(पत्नीव्रत ऋषि के गले में मृतक सर्प की कथा का परीक्षित् की कथा से साम्य), २.८६.४२(विश्रवा व पुष्पोत्कटा - कन्या ) shringee/ shringi
शेखरज्योति कथासरित् १२.५.२६८,
शेप द्र. शुन:शेप
शेष गणेश १.८९.३३(शेष द्वारा गर्व करने पर शिव द्वारा शेष के मस्तक को दशधा भिन्न करना, शेष द्वारा गणेश की आराधना, पञ्चशिर होना, गणेश द्वारा शेष को स्वोदर में बांधना, शेष द्वारा धरणीधर नाम से गणेश की आराधना), २.१०.३१(सागर द्वारा महोत्कट गणेश को आसन हेतु शेष भेंट), २.१००.१५(वासुकि को मयूरेश्वर गणेश के बन्धन से मुक्त करने के लिए शेष का आगमन, स्वयं बन्धनग्रस्त होना), गरुड ३.६.४४(शेष द्वारा हरि-स्तुति), ३.२१.२६(वारुणी-पति), ३.२३.३३(शेषाचल पर श्रीनिवास की स्थिति, शेष के पृष्ठ को नमन का निषेध), ३.२४.६३(शेषाचल पर श्रीनिवास के वास का उल्लेख), ३.२६.१, २४(श्रीहरि द्वारा पृथिवी पर शेषाचल स्थापना का कथन, शेष के मुख, मध्य व पु्च्छ में श्रीनिवास आदि की स्थिति), ३.२८.२(शेष-पत्नी वारुणी का उल्लेख), ३.२९.६७(प्रणाम काल में शेषांतस्थ विष्णु के ध्यान का उल्लेख), देवीभागवत ९१, नारद १.११४.५(वैशाख शुक्ल पञ्चमी को शेष पूजा का निर्देश), पद्म ५.१+ (शेष द्वारा वात्स्यायन को राम कथा का उपदेश), ब्रह्म १.१९(रुद्र संकर्षण शेष की पातालमूल में स्थिति), २.४५(स्व स्थान रसातल से दैत्यों द्वारा निष्कासित होने पर शेष द्वारा शिव से शूल की प्राप्ति, दैत्यों का निष्कासन), भविष्य ३.४.१२.४०(पिनाक धनुष में शेष के गुण बनने का उल्लेख), ३.४.२०.१८(अपरा प्रकृति के देवों में से एक ; शेष - पति हरि), ३.४.२५.१४२(शेष का भूमा आदि ३ भागों में विभक्त होना), ६८, ४.९४.३(अनन्त का पर्याय शेष, तक्षक), वामन ६१.२०(शेष पाप के लक्षणों का कथन ; ज्ञानाधिक अशेष द्वारा शेष पाप की जय का कथन), वायु ५०.४५(शेष के स्वरूप का वर्णन, शेष की पातालान्त में स्थिति), विष्णुधर्मोत्तर १.६३.३९(अनिरुद्ध के शेष तत्त्व होने का उल्लेख), १.२३७.१३(शेष से अज्ञान नाश की प्रार्थना), शिव २.५.९.७(शेष द्वारा शिव के रथ का भार वहन करने में असमर्थता), स्कन्द १.२.१३.१९१(शतरुद्रिय प्रसंग में शेष द्वारा गोरोचन लिङ्ग की पशुपति नाम से पूजा), २.१.१०, ४.२.६१.२१(शेष माधव तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.८४.२६(शेष तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.१०.४, ७.१.२४१(शेष लिङ्ग का माहात्म्य, बलराम द्वारा त्यक्त कलेवर का दर्शन), लक्ष्मीनारायण १.५२०, २.२४१.६१(वैवस्वत मनु द्वारा मन्दिर में कुण्डलिनी प्रिया व योग पुत्र सहित शेष की स्थापना का कथन), ३.१६.५९(शेष के कच्छप वाहन का उल्लेख ), ३.४९.८५(गुर्वी की सक्थियों में इन्द्र व शेष की स्थिति का उल्लेख), ३.१४२.११(सर्पदंशन के संदर्भ में शेष का अर्क ग्रह से साम्य), द्र. यज्ञशेष shesha Veda study on Shesha / remainder
शैब्य भविष्य ३.३.१०.४६(पपीहक व हरिणी - पुत्र शैब्य अश्व का मनोरथ रूप में अवतरण ), विष्णु ३.१८.५३ shaibya
शैब्या देवीभागवत ७.२६, ९.११, पद्म १.५१(शैब्या पतिव्रता के कुष्ठी पति द्वारा माण्डव्य को व्यथित करने पर शाप की प्राप्ति, शैब्या द्वारा सूर्योदय का निरोध), ५.७०.६(कृष्ण - पत्नी, अग्निकोण में स्थिति), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.६(सगर-भार्या, असमञ्ज-माता, वैदर्भी-सपत्ना), ४.६.१४४(कृष्ण-पत्नी, सरस्वती का अंशावतार), मत्स्य ४४,मार्कण्डेय ८(शैब्या - हरिश्चन्द्र उपाख्यान),विष्णु ३.१८.५३(शतधनु - पत्नी, जन्मान्तर में पति का श्वान आदि योनियों से उद्धार), ४.१२.१३(पति ज्यामघ द्वारा अन्य कन्या को रथ में स्थान देने पर शैब्या का कोप, कन्या के शैब्या-पुत्र विदर्भ की पत्नी बनने का वृत्तान्त), स्कन्द ७.४.१२.३१ (शैब्या गोपी की कृष्ण से विरह पर प्रतिक्रिया), हरिवंश १.३६.१६(ज्यामघ - भार्या, विदर्भ - माता), २.१०३.१६(कृष्ण - भार्या शैब्या के पुत्रों के नाम ), लक्ष्मीनारायण १.३८६(शतधनु-पत्नी शैब्या द्वारा त्वरित काल गति से पति का श्वान आदि योनियों से उद्धार), shaibyaa
शैल गणेश २.९१.५०(गणेश द्वारा विराट रूप धारण कर श्वास से शैलासुर का वध), पद्म १.२१.८९(धान्य शैल आदि १० दान), भविष्य ४.१९५+ (धान्य, लवण, गुड, हेम, तिल, कार्पास, रत्न, रजत आदि शैलों के दान की विधि व माहात्म्य), वराह २१५, वामन ६८शैलादि, विष्णुधर्मोत्तर ३.१६१(शैल व्रत), स्कन्द ४.२.६६.१४५(उमा - पिता हिमवान् द्वारा काशी में स्थापित शैलेश लिङ्ग का माहात्म्य), ४.२.७०.३७(शैलेश्वरी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.३८.३९(शैल रूप धारी असुर द्वारा बालकृष्ण को मारने का उद्योग, गरुड व सुदर्शन चक्र की सहायता से कृष्ण द्वारा शैल को नष्ट करना), ४.८३.१०८(नन्दिभिल्ल राजा का सेनापति, कुवर द्वारा युद्ध में वध का वर्णन ), कथासरित् ७.८.१२५शैलपुर, वास्तुसूत्रोपनिषद १.९(शैल के षड्धा होने का कथन), द्र. श्रीशैल shaila
शैलरोमा पद्म ६.७(जालन्धर - सेनानी, विष्णु से युद्ध व मृत्यु), ६.१२.३(जालन्धर - सेनानी, पुष्पदन्त से युद्ध ) shailaromaa
शैलूष विष्णुधर्मोत्तर १.२०१(शैलूष वंश), १.२१०(शैलूष द्वारा गन्धर्व पुत्रों से युद्ध की मन्त्रणा), १.२५४, वा.रामायण ४.४१.४३, ७.१२.२५(शैलूष गन्धर्व की कन्या सरमा का मानस तट पर जन्म, सरमा नाम धारण के हेतु का कथन), ७.१००+ (भरत द्वारा शैलूष गन्धर्वराज की सन्तानों का संहार), लक्ष्मीनारायण २.२८.२४(शैलूष जाति के नागों का नृत्यकार होना ) shailoosha/ shailuusha/ shailusha
शैलोदा ब्रह्माण्ड १.२.१८.२२(शैलोद सर व नदी), वायु ४७.२१(शैलोदा नदी की अरुण पर्वत से उत्पत्ति ), वा.रामायण ४.४३ shailodaa
शैव वामन ९०.४१(शैव लोक में विष्णु की सनातन नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), शिव ७.२.२९.९(शैवों के ज्ञान यज्ञ में तथा माहेश्वरों के कर्मयज्ञ में रत होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.१९०शैवल shaiva
शैशिरायण हरिवंश १.३५.१२(ब्रह्मचर्य व्रत के प्रसंग में शैशिरायण गार्ग्य की वृकदेवी पत्नी से कालयवन का जन्म ) shaishiraayana/ shaishirayana
शोक महाभारत वन३१३.९३, लक्ष्मीनारायण २.५.७९, २.२५३.४, ३.७.७९विशोक, द्र. विशोक shoka
शोचिष्केश गणेश २.९६.३४(श्रीहरि द्वारा प्रयुक्त गणेश का नाम),
शोण देवीभागवत ७.३०(शोण - सुभद्रा सङ्गम पर लोला देवी के वास का उल्लेख), १२.६.१४६(शोणा : गायत्री सहस्रनामों में से एक), पद्म ५.११२(कला - पति शोण मुनि द्वारा पत्नी के पार्वती की दासी बनने पर शिव से सदृश भार्या की मांग), मत्स्य २(प्रलयकारक मेघ), वामन ९०.२४(शोण में विष्णु का रुक्मकवच नाम), शिव ५.५१.१६, स्कन्द १.३.२.२३.४७(फल की प्राप्ति हेतु गणेश द्वारा शोणादि रूपी पिता की प्रदक्षिणा व स्कन्द द्वारा पृथिवी की प्रदक्षिणा ), ५.३.५.८, ५.३.६.२८(नर्मदा के शोणा नाम का कारण), ५.३.१९८.८३, लक्ष्मीनारायण २.५.३४, shona
शोणभद्र पद्म ३.३९, शिव १.१२.११(दशमुखा शोणभद्रा का संक्षिप्त माहात्म्य), वा.रामायण १.३१(राम व विश्वामित्र का शोणभद्र नदी पर आगमन, शोणभद्र की तटवर्ती भूमि का वर्णन, मागधी उपनाम ), लक्ष्मीनारायण ३.९, shonabhadra
शोणाद्रि स्कन्द १.३.१.१+ (अरुणाचल का उपनाम), १.३.१.८, १.३.२.२२(शोणाद्रि का माहात्म्य, शोणाद्रि की प्रदक्षिणा का फल ) shonaadri/ shonadri
शोणित विष्णुधर्मोत्तर १.३.६(यज्ञवराह के सोम शोणित होने का उल्लेख), द्र. रक्त
शोणितपुर पद्म ६.१८, ब्रह्माण्ड ३.४.१२.४(भण्डासुर हेतु शोणितपुर का निर्माण ), शिव २.५.५१, हरिवंश २.१२१, वा.रामायण ७.७५?, ७.७९? shonitapura
शोणिताक्ष वा.रामायण ६.७६.३४(रावण - सेनानी, द्विविद द्वारा वध),
शोभन गर्ग १.४३.१०(मुचुकुन्द - जामाता, चन्द्रभागा - पति), ७.४३, पद्म ६.६०(चन्द्रसेन - पुत्र, चन्द्रभागा - पति, एकादशी व्रत से दिव्य भोगों की प्राप्ति ) shobhana
शोभा ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५२(शोभा गोपी की देह के तेज में रूपान्तरित होने का कथन), भविष्य ३.३.२८.५(शोभा वेश्या की कृष्णांश पर आसक्ति, कृष्णांश की कृपा, वेश्या द्वारा छल का वर्णन), ३.३.३०.५५(शोभा द्वारा लक्षण की खोज में सहायता करना), विष्णुधर्मोत्तर १.४२.२१(वक्ष में शोभा की स्थिति का उल्लेख), शिव २.५.३६.१२(शोभाकर : शङ्खचूड - सेनानी, वैश्वानर से युद्ध ) shobhaa
शोभावती देवीभागवत १२.६.१४६(गायत्री सहस्रनामों में से एक), शिव १.२?, स्कन्द ४.१.२९.१५५(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), कथासरित् १२.११.५, १२.१३.४, १२.३०.४ shobhaavatee/ shobhaavati
शोष अग्नि ९३.१६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), मत्स्य २५३.२६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक ), द्र. वास्तुमण्डल shosha
शोषण स्कन्द ६.३६.३६(शोषण हेतु काली कराली इति जपने का निर्देश ), ६.६०.२, shoshana
शौच अग्नि १५७, गणेश १.३.१३(विश्व त्याग के समय व पश्चात् पालनीय नियमों का वर्णन), गरुड ३.२९.३९(विण्मूत्र उत्सर्ग काल में अपानात्मक केशव तथा शौचकाल में त्रिविक्रम के स्मरण का निर्देश), देवीभागवत ७.३०(कृतशौच तीर्थ में सिंहिका देवी का वास), नारद १.३३.१००(बाह्याभ्यन्तर शौच का निरूपण), पद्म २.१२.८०(शौच का रूप), ३.२६.१९(कृतशौच तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.२६, ब्रह्माण्ड २.३.१५.८९(नित्य कर्मों में शौच), भविष्य १.१८६.३०(विभिन्न सम्बन्धियों की मृत्यु पर शौच का विधान), भागवत ११.१९.३८, ११.२१.१३, मार्कण्डेय ३४(शौच के विषय में अलर्क को मदालसा का अनुशासन), लिङ्ग १.८९, वायु ७८.५९(अयुक्त कर्मों हेतु शौच का विधान), विष्णु ३.११.८, विष्णुधर्मोत्तर २.७५, ३.१००(२१ प्रकार की अर्चा शौच का वर्णन), ३.२४९, ३.२७२(शौच का वर्णन), ३.२७५(मन: शौच ), शिव ५.२३.७, स्कन्द ५.३.२८.१८, लक्ष्मीनारायण ३.८०.७३, द्र. शुचि shaucha
शौण्ड मत्स्य ९२(शौण्ड स्वर्णकार द्वारा स्वर्णमय देव प्रतिमा के निर्माण से धर्ममूर्ति राजा बनना ), लक्ष्मीनारायण २.१४.८६, shaunda
शौनक गणेश २.३४.३०(शिष्य मन्दार को वृक्षत्व से मुक्त कराने हेतु शौनक द्वारा गणेश की आराधना), २.७३.२५(शौनक द्वारा राजा चक्रपाणि को पुत्र प्राप्ति हेतु सौर व्रत का उपदेश), गरुड ३.१.११ (ऋषियों का शौनक से मुक्ति हेतु तीर्थादि, अव्यभिचारिणी भक्ति आदि के विषय में पृच्छा, शौनक आदि का रोमहर्षण – पुत्र सूत के पास गमन), नारद १.१.१४(ऋषियों का शौनक से मुक्ति हेतु तीर्थादि, अव्यभिचारिणी भक्ति आदि के विषय में पृच्छा, शौनक आदि का रोमहर्षण – पुत्र सूत के पास गमन), ब्रह्म १.९.३३(शुनक-पुत्र, गृत्समद-पौत्र, ब्राह्मण आदि चार वर्णों के प्रवर्तक), मत्स्य २५.३(शतानीक द्वारा शौनक से ययातिचरित्र श्रवण), महाभारत आदि १.१९(शौनक के द्वादशवार्षिक यज्ञ में उग्रश्रवा का आगमन तथा महाभारत की कथा सुनाना), वन २.१४(अर्थ के दोषों के संदर्भ में युधिष्ठिर-शौनक संवाद तथा शौनक द्वारा अर्थ प्राप्ति हेतु तप का निर्देश), शान्ति १५२.३८(इन्द्रोत शौनक द्वारा जनमेजय को अश्वमेध अनुष्ठान की प्रेरणा व यज्ञ सम्पन्न कराना), अनुशासन ३०.६५(भृगुवंशी शुनक – पुत्र), विष्णु ४.८.६(गृत्समद-पुत्र, चातुर्वर्ण्य प्रवर्तक), स्कन्द ३.२.९.७९(शौनक गोत्र के ऋषियों के ३ प्रवर व गुण), ४.२.९७.१५७(शौनक ह्रद का संक्षिप्त माहात्म्य : मृत्यु को तरने वाले दिव्य ज्ञान की प्राप्ति), हरिवंश १.२९.७(शौनक वंश – गृत्समद – पौत्र, शुनक – पुत्र आदि), १.३०.१२(शौनक द्वारा लौहगन्धी राजा इन्द्रोत जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न कराने का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.९२.१४(शौनक-पूर्व वंश का कथन, क्षत्रियत्व का त्याग करने वाला हैहय/वीतहव्य वंश), shaunaka
शौरि पद्म ७.२३(शौरि ब्राह्मण द्वारा सुप्राज्ञा से एकादशी व्रत के माहात्म्य का श्रवण), वामन ९०.३(केदार तीर्थ में विष्णु का शौरि नाम ) shauri
शौर्य भागवत ११.१९.३७(स्वभाव विजय के शौर्य होने का उल्लेख), वराह ६४,
श्नविष्कट शिव ३.५
श्मशान मार्कण्डेय ८(हरिश्चन्द्र का उपाख्यान), वराह १३६(श्मशान की अपवित्रता का वर्णन), स्कन्द ३.१.९(अशोकदत्त द्वारा श्मशान में महामांस का विक्रय, राक्षसी से नूपुर की प्राप्ति), ४.१.२९.१६०(श्मशान शोधनी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.१.३०.१०२(श्मशान की निरुक्ति : श्म – शव, शानं - शयनं), ५.२.१८.२९(श्मशानवास से शिव के भीरुत्व नाश का उल्लेख), ७.१.२०१(कालभैरव श्मशान का माहात्म्य ), ७.४.१७.१५(श्मशाननिलय : आग्नेयी दिशा की रक्षा करने वालों में से एक), महाभारत अनुशासन १४१.१९दाक्षिणात्य(शिव के श्मशान वास का कारण : भूतों से उत्पन्न भय से मुक्ति आदि), लक्ष्मीनारायण १.५७६.६६(श्मशान के समल होने का कथन, रुद्र द्वारा त्रिपुर की प्रजा के शाप के प्रायश्चित्त हेतु श्मशान में वास का कथन), कथासरित् २.४.४८(यौगन्धरायण का उज्जयिनी में महाकाल श्मशान में प्रवेश, ब्रह्मराक्षस द्वारा यौगन्धरायण के रूप का परिवर्तन करना, यौगन्धरायण का उज्जयिनी में प्रवेश आदि), ३.४.१०७, ८.५.१२१, १२.३०.२६, १२.३५.७, shmashaana/ shmashana |