पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shyaamalaa, Shyena / hawk, Shraddhaa, Shravana, Shraaddha etc. are given here. श्मश्रु गर्ग ७.३७.२३(हरिश्मश्रु असुर की श्मश्रु/दाढी में मृत्यु छिपी होना), पद्म ६.४९.६०(पितरों द्वारा श्मश्रु से जल पीने का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.९(अग्नि की मूर्ति में दर्भ के श्मश्रु होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३१.१९(श्रीहरि की हिरण्यश्मश्रु से पूजा द्रव्य केसर के प्रकट होने का उल्लेख ), द्र. हरिश्मश्रु shmashru
श्याम मत्स्य ४६२७, १२२.१२(श्याम पर्वत के दुन्दुभि नाम का कारण ), लक्ष्मीनारायण २.१११.६०, ३.२३, ३.१८०.१२, द्र. सुश्याम shyaama/ shyama
श्यामला गरुड ३.५.५१(यम व अनिरुद्ध-भार्या, उषा से तादात्म्य), ३.२९.१६(यम-भार्या, कलि-भार्या, श्यामला-प्रिय द्रव्य), ३.२९.२४(श्यामला का देवकी, द्रौपदी, रोहिणी आदि रूपों में अवतरण), पद्म ५.७०.५(कृष्ण - पत्नी श्यामला की वायु कोण में स्थिति), ब्रह्माण्ड ३.४.१७.३२(देवी, ललिता - सहचरी, १६ नाम), ३.४.२६.३७ (श्यामला द्वारा चक्र रथ के दक्षिण की रक्षा), ४.२८.१०२, भविष्य ३.२.१६(चन्द्रशेखर राजा की पत्नी), ४.५४(निमि व उर्मिला - पुत्री, धर्मराज - पत्नी, व्रत के पुण्य दान से माता का नरक से उद्धार), स्कन्द ३.२.१८(श्यामला मातृका का कर्णाटक दैत्य से युद्ध व वध), ७.४.१२.२७(श्यामला गोपी की कृष्ण विरह पर प्रतिक्रिया ), ७.४.१७.३१(श्यामल : उत्तर दिशा के पालक गणाधिपों में से एक), लक्ष्मीनारायण २.११०.८३, shyaamalaa/ shyamalaa
श्यामा पद्म ४.११.७(श्यामाबाला : भद्रश्रवा व सुरतिचन्द्रिका - पुत्री, ब्राह्मणी रूप धारी लक्ष्मी से गुरुवार व्रत के उपदेश का श्रवण, मालाधर से विवाह), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३७.१८(श्यामा काली से वारुण दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), भागवत ५.२.२३(मेरु की ९ कन्याओं में से एक, हिरण्मय - पत्नी), लक्ष्मीनारायण ३.११८.७०, ४.१०१.१२५, shyaamaa/ shyamaa
श्यामाक ब्रह्माण्ड २.३.१४.६(श्यामाक की इन्द्र से उत्पत्ति का कथन), स्कन्द २.१.९(श्यामाक/सांवां वन का निषाद स्वामी, तोण्डमान नृप का आगमन), लक्ष्मीनारायण १.४०१.८(श्रीहरि द्वारा निषाद - पुत्र से श्यामाक नैवेद्य स्वीकार करने का वृत्तान्त ) shyaamaaka/ shyamaka
श्याव ब्रह्माण्ड २.३.७.३१२(सरमा के पुत्र-द्वय व यम के अनुचरों श्याव – शबल का उल्लेख ), शिव ३.५.२२(स्यावास्य/श्यावाश्व : १८वें द्वापर में व्यास के चार पुत्रों में एक) , ५.१०.३५(यममार्गानुरोधक श्याम व शबल के लिए बलि देने का निर्देश), shyaava/ shyava
श्येन देवीभागवत २.१, ब्रह्म २.२३(विश्वामित्र द्वारा अनावृष्टि काल में श्व मांस भक्षण की चेष्टा, श्येन रूप धारी इन्द्र द्वारा मांस का हरण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१४(श्येनजित् सेनानी की सूर्य रथ में स्थिति का कथन), मार्कण्डेय १५.२२(दुष्कृत्य के फलस्वरूप श्येन योनि की प्राप्ति का उल्लेख), ५१.६८(मृत्यु द्वारा शकुनि - पुत्र श्येन का ग्रहण), वायु ६९.३२५(ताम्रा से श्येनों की सृष्टि का वर्णन ), स्कन्द ५.२.६९.३२, ५.३.१६९.३३, ५.३.१७०, महाभारत अनुशासन ३२.१०, लक्ष्मीनारायण ३.८५, ४.६८, कथासरित् १.७.८८, १०.४.२४४, shyena
श्येनी स्कन्द ४.१.४५.३७(६४ योगिनियों में से एक), वा.रामायण ३.१४.३३(अरुण - पत्नी, जटायु - माता ), द्र. वंश ताम्रा shyeni
श्रद्धा गरुड ३.१६.९१(रोचन इन्द्र की भार्या), देवीभागवत ३.८.५(श्रद्धा के सात्त्विक, राजसिक आदि भेदों का वर्णन), ६.१३.५२(श्रद्धा के सात्त्विक आदि प्रकार), नारद १.१६.३३(श्रद्धा के भक्ति से तादात्म्य का उल्लेख), १.६६.८९(पद्मनाभ विष्णु की शक्ति श्रद्धा का उल्लेख), पद्म २.१२.८९(श्रद्धा की मूर्त्ति का स्वरूप), २.९७.५१(आध्यात्मिक कृषि में श्रद्धा के शस्त्र होने का उल्लेख), ५.७३.४०(अश्रद्धा से पूजा फल ग्रहण करने से हरिदास राजा के दारुण वेणु बनने की कथा), भागवत ३.२४(कर्दम - कन्या, अङ्गिरा - पत्नी), ४.१.३४(अङ्गिरा – पत्नी श्रद्धा की ४ पुत्रियों के नाम), ४.१.४९(धर्म की पत्नियों में से एक, शुभ – माता), मत्स्य १९.११(श्राद्ध में श्रद्धा पुष्प का निरूपण : प्रदत्त अन्न का विभिन्न योनियों में वितरण), ४६.२०(वसुदेव - भार्या), विष्णु १.७.२८(धर्म की पत्नियों में से एक, काम – माता), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८१, ३.२७६(श्रद्धा के देवश्रद्धा, पापश्रद्धा आदि प्रकार व फल), शिव २.५.८.१५(शिव रथ में गति का रूप), २५९, स्कन्द ४.१.२९.१५८(गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), महाभारत शान्ति ६०.४०(श्रद्धायज्ञ के सब यज्ञों में अग्रिम होने का उल्लेख), २६४.८(श्रद्धा का सूर्य – दुहिता सावित्री से तादात्म्य, श्रद्धा की प्रशंसा), लक्ष्मीनारायण २.२४९.२(श्रद्धा की प्रशंसा), ३.५१.१२१, द्र. दक्ष कन्याएं shraddhaa
श्रम महाभारत आश्वमेधिक ३१.२(३ तामस गुणों में से एक), द्र. वंश वसुगण
श्रव मत्स्य ५०.२७(प्रत्यश्रवा : चैद्योपरिचर वसु व गिरिका के ७ पुत्रों में से एक ), लक्ष्मीनारायण २.६०.५४जितश्रवा, द्र. उग्रश्रवा, उच्चैःश्रवा, पृथुश्रवा, प्रतिश्रव, भद्रश्रवा, वाच:श्रवा, विश्रवा, वेदश्रवा, श्रुतश्रवा, सुश्रवा, सोमश्रवा shrava
श्रवण गरुड २.५.१४६(यम के १३ प्रतीहार गण की संज्ञा), २.१६.४९+(श्रवण गण द्वारा प्रेतों के शुभाशुभ कर्मों का कथन, श्रवण गण की उत्पत्ति), २.२५(मृतक/प्रेत के कर्मों का दर्शन करने वाले द्वादश गण), ३.२०.२३(हरि प्राप्ति साधना के साधनों में श्रवण साधना की उत्कृष्टता का वर्णन), पद्म ६.२२२(कुण्डा - पति व कुरण्टक - भ्राता श्रवण ब्राह्मण का मृत्यु पर काक बनना, काशी प्रभाव से मुक्ति), भविष्य ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड श्रवण से विश्वकर्मा/रैवत मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख), ४.७५(श्रवण द्वादशी व्रत, मरु प्रदेश में वणिक् को प्रेतों द्वारा भोजन, वणिक् द्वारा हिमालय में प्राप्त धन से श्राद्ध से प्रेतों की मुक्ति), ४.९५(शुभाशुभ कर्म का श्रवण ब्रह्मा को कराने वाली श्रावणी देवियां, नहुष -पत्नी जयश्री के कल्याणार्थ अरुन्धती द्वारा श्रावणिका व्रत का कथन), लक्ष्मीनारायण १.६५(दूर श्रवण, दूरदर्शन आदि विज्ञान से सम्पन्न यम के १२ अनुचर), १.२५४.४४(पितरों का नाम, श्रावण एकादशी व्रत से श्रवण सिद्धि की प्राप्ति ) shravana
श्रविष्ठा ब्रह्म १.११
श्राद्ध अग्नि ११७(कात्यायन - प्रोक्त श्राद्ध कल्प, गया में श्राद्ध), ११७.३४(एकोद्दिष्ट, सपिण्डीकरण, आभ्युदयिक, काम्य श्राद्ध की विधियों का वर्णन), ११७.४४(श्राद्ध में मांस द्वारा पितर तृप्ति का कथन), ११७.४८(तिथि अनुसार श्राद्ध का फल), १६३(श्राद्ध कल्प का वर्णन), १६५(गजच्छाया श्राद्ध), कूर्म २.२०.१७ ( नक्षत्र व तिथि अनुसार श्राद्ध के फल की प्राप्ति), २.२०.३७(श्राद्ध में भक्ष्याभक्ष्य भोजन द्रव्य विचार), २.२१(श्राद्ध हेतु प्रशस्त - अप्रशस्त ब्राह्मण), गरुड १.८३+ (गया में श्राद्ध का माहात्म्य), १.९९(श्राद्ध की विधि), १.२१८( पार्वणश्राद्ध विधि), १.२१९(नित्यश्राद्ध, वृद्धिश्राद्ध व एकोद्दिष्ट श्राद्ध विधि), १.२२०(सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि), १.२११(एकोद्दिष्ट/नित्य श्राद्ध की विधि), १.२१२(सपिण्डीकरण श्राद्ध की विधि), २.६(मासिक श्राद्ध से मृतक/प्रेत के कल्याण का वर्णन), २.८(जीवित रहते हुए आत्मश्राद्ध विधि), २.१०.२७(श्राद्ध में विप्र भोक्ता के उदर में पितर, वाम पार्श्व में पितामह तथा दक्षिण पार्श्व में प्रपितामह की स्थिति का कथन), २.१५.२९(पार्वण श्राद्ध : केवल औरस पुत्र द्वारा करणीय), २.१६(सपिण्डीकरण श्राद्ध का विधान), २.२५.३५(औरस पुत्र द्वारा पार्वण तथा अन्य पुत्रों द्वारा एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान), २.२७.३०(१६ श्राद्धों का उल्लेख), २.३२(पार्वण, एकोद्दिष्ट व अन्य श्राद्ध), २.३३(नित्य श्राद्ध के नियम), २.३५.२९(प्रेत श्राद्ध में वर्जित १८ कर्म), २.४५.१(विभिन्न सम्बन्धियों के लिए एकोद्दिष्ट व पार्वण श्राद्ध विधि), २.४५.७(अपुत्रों हेतु एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान), ३.२९.५०(श्राद्ध काल में अच्युतानन्त गोविन्द के स्मरण का निर्देश), नारद १.१४.८१(कन्या हेतु श्राद्ध का निर्णय, मृत्यु पर श्राद्ध विधान), १.२८(श्राद्ध विधि, श्राद्ध भोजन हेतु पात्र - अपात्र विचार), १.५१.१०१(श्राद्ध विधि), १.५१.१०३(श्राद्ध योग्य पात्र - अपात्र ब्राह्मण के लक्षण), १.१२३.३९(आश्विन् कृष्ण चतुर्दशी को एकोद्दिष्ट श्राद्ध विधि), २.४५+ (गया में श्राद्ध), २.५८(जगन्नाथ), पद्म १.९(श्राद्ध विधि, प्रकार, श्राद्ध योग्य देश व नदी), १.११.८६(श्राद्ध हेतु उपयुक्त काल), १.२७, १.३१, १.३३, १.५०.२७३(वसिष्ठ के सात शिष्यों द्वारा श्राद्धार्थ होम धेनु के वध की कथा), १.६०, २.७०, ५.१०५(श्राद्ध काल का निर्णय), ५.११७.६३(राम द्वारा कौसल्या का मासिक श्राद्ध), ६.२१४, ब्रह्म १.११०(पितर श्राद्ध की विधि), १.१११(विभिन्न मांसों से पितरों की तृप्ति, श्राद्धार्ह तिथियां), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१०४.५२(पैतृक जन्म भूमि पर श्राद्ध कर्म की महिमा), ब्रह्माण्ड २.३.९, २.३.११(श्राद्ध विधि व माहात्म्य), २.३.१३(श्राद्ध हेतु निर्दिष्ट तीर्थ स्थान), २.३.१४.११(श्राद्ध हेतु वर्ज्य - अवर्ज्य द्रव्य), २.३.१७(तिथि अनुसार श्राद्ध कर्म का फल), २.३.१८(नक्षत्र अनुसार श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), २.३.१९.३ (श्राद्ध में मांस दान का फल), भविष्य १.१८३+ (श्राद्ध के भेदों के नाम व वर्णन), १.१८५.३(मातृ श्राद्ध की विधि), ३.४.७.५८, मत्स्य १५(वर्जित - अवर्जित श्राद्ध द्रव्य), १६(श्राद्धों के भेद, विधि, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण के लक्षण), १७(श्राद्ध विधि व काल), १८(एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध विधि), १९.८(श्राद्धान्न के सर्पों, यक्षों, राक्षसों आदि में रूपान्तरों का कथन), २२(श्राद्ध योग्य तीर्थ व नदियां), ४६.२४, १४१(पुरूरवा द्वारा अमावास्या में पितर श्राद्ध), २०४, मार्कण्डेय ३०(२७)+ (मदालसा द्वारा अलर्क को श्राद्ध विषयक अनुशासन), ३०/३३.१ (प्रतिपदा आदि तिथियों में श्राद्ध के फल का कथन), ३२(श्राद्ध में मांस से तृप्ति), ३३ (३०)(विभिन्न तिथियों व नक्षत्रों में श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), ३४(अमावास्या को श्राद्ध), लिङ्ग २.४५(जीवित श्राद्ध की विधि), वराह १३(मार्कण्डेय द्वारा गौरमुख को श्राद्ध विषयक कथन), १८०, १८८, १९०.६६(अजीर्ण से निवृत्ति हेतु त्रिदेवों के साथ सोम का चतुर्थ पितर बनना, अग्नि का भी सम्मिलित होना), १९०(अपाङ्क्तेय विप्र का वर्णन), वायु ७१.६६(श्राद्ध भोजन हेतु उपयुक्त पात्र), ७५(श्राद्ध विधि व श्राद्ध योग्य द्रव्य), ७७(श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ), ८०(श्राद्ध में विभिन्न दानों का फल), ८१(विभिन्न तिथियों में श्राद्ध का फल), ८२(नक्षत्रों में श्राद्ध का फल), ८२.४(विभिन्न मांसों से विभिन्न कालिक पितर तृप्ति), ८२.१४(गया में श्राद्ध का माहात्म्य), ८२.६०(श्राद्ध में अपाङ्क्तेय पात्र), १०५+ (गया में श्राद्ध का माहात्म्य), ११०(गया में श्राद्ध की विधि), विष्णु ३.१३(एकोद्दिष्ट व सपिण्डीकरण श्राद्ध का विधान), ३.१५(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार, श्राद्ध विधि), ३.१६(श्राद्ध हेतु वर्जित व विहित द्रव्य), ४.१३.५०/४.१३.२७ (जाम्बवान् से युद्धरत कृष्ण द्वारा बान्धवों द्वारा श्राद्ध से बल प्राप्त करने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर १.४३(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार), १.१३७.३०(चन्द्रमा द्वारा उर्वशी व पुरूरवा को देखने पर श्राद्ध), १.१४०(श्राद्ध विधि), १.१४१.१(श्राद्ध हेतु वर्ज्य देश), १.१४२(श्राद्ध काल), १.१४४(श्राद्ध हेतु उपयुक्त देश), २.७७, ३.११९.१२(श्राद्ध कार्य में वराह की पूजा), शिव ५.४०(पितर श्राद्ध), ६.११.३६(श्राद्ध के प्रकार व उनके देवताओं का वर्णन), ६.१२.३६(प्रणव अर्थ के प्रसंग में नान्दी श्राद्ध विधि), ६.२२, स्कन्द २.१.२२, २.१.२५(जाबालि - प्रोक्त पार्वण श्राद्ध), २.४.९, ३.१.३६.३९(दत्तात्रेय - प्रोक्त महालय पक्ष में श्राद्ध की महिमा, तिथि अनुसार महालय श्राद्ध का फल), ३.२.७(श्राद्ध का माहात्म्य), ४.१.३६.२९(महालय श्राद्ध का माहात्म्य), ५.१.५८(श्राद्ध का माहात्म्य, पितरों का सप्तधा विभाजन, दिशाओं के अनुदिश स्थिति), ५.१.५४.२५ (आश्विन् अमावास्या को महालयश्राद्ध का महत्त्व), ५.२.२८.८४, ५.३.५१.९, ५.३.१४६, ५.३.१९५.४१, ६.१९, ६.२०४(युद्ध में हत योद्धाओं के प्रेतों की मुक्ति हेतु विष्णु व इन्द्र का श्राद्ध विषयक संवाद, चतुर्दशी श्राद्ध), ६.२०६(इन्द्र द्वारा एकोद्दिष्ट श्राद्ध, विश्वेदेवों को शाप), ६.२१५+ (भर्तृयज्ञ द्वारा आनर्त नृप को श्राद्ध के काल, विधि आदि का कथन), ६.२१९(विभिन्न तिथियों में श्राद्ध के अनुष्ठान का फल), ६.२२०(विभिन्न पशुओं के मांसों से श्राद्ध में तृप्ति का वर्णन), ६.२२२(शस्त्र द्वारा हत मृतकों के लिए एकोद्दिष्ट श्राद्ध), ७.१.२०५+ (श्राद्ध काल, एकोद्दिष्ट व पार्वण श्राद्ध, श्राद्ध योग्य ब्राह्मण, अन्न, वस्त्र आदि), ७.१.२०७(श्राद्ध हेतु पात्र - अपात्र विचार), हरिवंश १.१६(भीष्म द्वारा पितरों को हस्त पर पिण्ड न देना), १.२४(श्राद्ध के संदर्भ में राजा ब्रह्मदत्त का वृत्तान्त), महाभारत वन ३१३.८५ (श्राद्ध के मृत होने का प्रश्न व उत्तर), अनुशासन २२.८ (कव्यप्रदान में ब्राह्मण की परीक्षा का निर्देश आदि), २३ (श्राद्धकाल, श्राद्ध हेतु योग्य – अयोग्य पात्र), १२५ (पिण्डदान विधि), १४५दाक्षिणात्य पृ. ६००२, लक्ष्मीनारायण १.४०(श्राद्ध का माहात्म्य, श्राद्ध द्रव्य), १.१५८.१४(तिथि अनुसार श्राद्ध का फल, नक्षत्र अनुसार श्राद्ध से कामना पूर्ति), १.२८० (अमावास्या तिथियों में श्राद्धों के फल), १.३५४ (मथुरा में ध्रुवतीर्थ में श्राद्ध का माहात्म्य), १.५६४.४७(अमावास्या के दिन पितरों द्वारा पिण्डों को हाथ में स्वीकार करने का उल्लेख ), २.५.१०३, २.१४५.६९नान्दी श्राद्ध, ३.१०१.२, ३.१६५, ४.६, द्र. महालय shraaddha/ shraddha
श्राद्धदेव भागवत ८.२४(सूर्य - पुत्र सत्यव्रत/श्राद्धदेव द्वारा कृतमाला नदी में तर्पण, मत्स्य की प्राप्ति, मत्स्यावतार का वर्णन), वायु ९६.१८६(अस्मकी - पुत्र, निषाद/निषध की स्थापना ), शिव ३.२९, shraaddhadeva/ shraddhadeva
श्रान्त विष्णुधर्मोत्तर ३.२९८.१७, द्र. विश्रान्ति |