पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shivagana, Shivaraatri, Shivasharmaa, Shivaa, Shishupaala, Shishumaara, Shishya/desciple, Sheela, Shuka / parrot etc. are given here. Esoteric aspect of Shishupaala शिशुपाल गर्ग ६.४.७(रुक्मी द्वारा रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करने का निश्चय - युवराजस्ततो रुक्मी तं निवार्य्य प्रयत्नतः । कृष्णशत्रुर्महावीरं शिशुपालममन्यत ।।), ७.९.१४(दमघोष व श्रुतिश्रवा - पुत्र, प्रद्युम्न से युद्ध में विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग, पराजय), देवीभागवत ४.२२.४२ (हिरण्यकशिपु का अंश- हिरण्यकशिपोरंशः शिशुपाल उदाहृतः । ), पद्म ६.२५२.१५(तत्र शिशुपालः कृष्णं बहून्याक्षेपवाक्यान्युक्तवान् । कृष्णोऽपि सुदर्शनेन तस्य शिरश्चिच्छेद।।) ब्रह्मवैवर्त्त ३.१७.१६(स्कन्द से सम्बन्धित महाषष्ठी का शिशुपालिका नाम - ददौ तस्मै वेदमन्त्रैर्विवाहविधिना स्वयम् ।। यां वदन्ति महाषष्ठीं पण्डिताः शिशुपालिकाम् ।।), ४.११३.२९(शिशुपाल द्वारा कृष्ण की स्तुति), भागवत ७.१.४५(शिशुपाल के पूर्व जन्म में जय - विजय होने का प्रसंग), ७.१.३२(शिशुपाल द्वारा द्वेष से मुक्तिप्राप्ति - गोप्यः कामाद्भयात्कंसो द्वेषाच्चैद्यादयो नृपाः। सम्बन्धाद्वृष्णयः स्नेहाद्यूयं भक्त्या वयं विभो।।), १०.५३(शिशुपाल के रुक्मिणी से विवाह का आयोजन, विवाह में असफलता), विष्णु ४.१५.१(शिशुपाल के जन्मान्तरों का वर्णन), स्कन्द ५.३.१४२.२० (भीष्मक द्वारा स्वकन्या चतुर्भुज शिशुपाल को देने का निश्चय), ७.१.२०.३२ (योऽसौ देवि दशग्रीवः संबभूवारिमर्द्दनः ॥ दमघोषस्य राजर्षेः पुत्रो विख्यातपौरुषः ॥ श्रुतश्रवायां चैद्यस्तु शिशुपालो बभूव ह ॥, हरिवंश २.३६.३(शिशुपाल का गद से युद्ध ), २.४२.४२(कृष्ण-बलराम के हनन हेतु चेदिपाल द्वारा गोमन्तकपर्वत में आग लगाने का परामर्श), shishupaala/ shishupala Esoteric aspect of Shishupaala
शिशुमार देवीभागवत ८.१६, ८.१७(शिशुमार चक्र की महिमा, शिशुमार चक्र में नक्षत्रों, देवों आदि का न्यास), ब्रह्म १.२२(तारों से निर्मित शिशुमार चक्र की पुच्छ में ध्रुव, ह्रदय में नारायण), ब्रह्माण्ड १.२.२३.९९(शिशुमार के शरीर में देवों, तारकों का न्यास), भविष्य ३.४.५.६(प्रलय के उपरान्त विष्णु द्वारा शिशुमार चक्र की सृष्टि), भागवत ५.२३(शिशुमार चक्र का वर्णन, देह में नक्षत्रादि का न्यास - ज्योतिरनीकं शिशुमारसंस्थानेन भगवतो वासुदेवस्य योगधारणायामनुवर्णयन्ति ॥), मत्स्य १२५.५, वायु ५२.९१(शिशुमार के शरीर में देवगण का न्यास), विष्णु २.९(शिशुमार की महिमा का कथन, आकाशगङ्गाजल की महिमा), २.१२.२९(शिशुमार चक्र में देवतादि का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६(शिशुमार शरीर में देवता आदि का न्यास), स्कन्द ४.१.१२, लक्ष्मीनारायण ३.१६.५२(वरुण के वाहन जलधि नामक शिशुमार की ब्रह्मा के कर्णमल से उत्पत्ति का उल्लेख - ब्रह्मकर्णमलोद्भूतं श्यामं जलधिनामकम् । शिशुमारमधिरुह्य वरुणस्तत्र चाययौ । ), कथासरित् १०.७.९८(वानर व शिशुमार में मैत्री के उदय व नाश की कथा), shishumaara/ shishumara
शिश्न पद्म ५.१०९.१०७(इक्ष्वाकु ब्राह्मण द्वारा शिवलिंग की निन्दा से शिश्नवक्त्र होने का कथन), विष्णु २.१२.३३(ध्रुव के शिश्न में संवत्सर का न्यास), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६.७(ध्रुव देह में संवत्सर के शिश्न होने का उल्लेख )
शिष्ट कूर्म १.१४.३(शिष्टि : ध्रुव - पुत्र, सुच्छाया - पति, ५ पुत्रों के नाम ), मत्स्य ४ shishta
शिष्टाचार ब्रह्माण्ड १.२.३२.४१(शिष्टाचार के लक्षण), वायु ५९.३३(शिष्टाचार की निरुक्ति),
शिष्य अग्नि २७(शिष्य की दीक्षा विधि), २९३.१६(गुरु से प्राप्त मन्त्र की सिद्धि में ही कल्याण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.४(तर्पण, पिण्डदान में शिष्य के पुत्र के समकक्ष होने का कथन), ४.१०४.३०(विभिन्न ऋषियों के शिष्यों की संख्या), ब्रह्माण्ड २.३.४(द्वैपायन व्यास के शिष्य), २.३४.२४(पैल के शिष्य), २.३४.३१(सत्यश्रिय के शिष्य), २.३५.२(शाकल्य के शिष्य, २.३५.५(बाष्कलि के शिष्य), २.३५.२८(व्यास के शिष्य), २.३५.३७(सुकर्मा के शिष्य), २.३५.४०(हिरण्यनाभ के शिष्य), २.३५.४२(कुशुम के शिष्य), २.३५.४९(हिरण्यनाभ व लाङ्गलि के शिष्य), २.३५.६०(शौनक के शिष्य), २.३५.६५(सूत के शिष्य), २.३५.८८(देवदर्श के शिष्य), भागवत ५.२.९, वामन ६१.२९(शिष्य व पुत्र में भेद, शिष्य की निरुक्ति : शेषों/पापों को तारने वाले), विष्णु ६.८(शिष्य परम्परा), विष्णुधर्मोत्तर २.८६(शिष्य के आचार की विधि), शिव ३.४+ (२८ द्वापरों के व्यासों के शिष्य), ६.१९(गुरु द्वारा शिष्य को दीक्षा की विधि), ७.२.१६(शिष्य का दीक्षा संस्कार), ७.२.२०, स्कन्द २.५.१६(शिष्य के लक्षण), ४.२.५८.७२(काशी से दिवोदास के उच्चाटन हेतु विष्णु व गरुड द्वारा बौद्ध आचार्य व शिष्य रूप धारण), महाभारत आश्वमेधिक ५१.४६(मन के शिष्य होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३८२.१६३(विभिन्न ऋषियों के शिष्यों की संख्या), २.४७.२०(शिष्य की निरुक्ति : शेष पाप हर), २.४७.५७(शिष्य द्वारा विज्ञान से जोडने का उल्लेख, शिष्य की महिमा), २.४७.७९(शिष्यों के ३ प्रकार ), कथासरित् १०.७.१६३, shishya
शीघ्रग पद्म १.६(सम्पाति गृध्र का पुत्र), १.३२(शीघ्रग प्रेत का पृथु ब्राह्मण से संवाद व मुक्ति), मत्स्य ६, १२८.७०(शीघ्र गति करने वाले ग्रहों के नाम), वायु १३.१२(योग के द्वितीय पद के रूप में शीघ्रग का उल्लेख ), वा.रामायण १.७०.४१ sheeghraga/ shighraga
शीत वा.रामायण १.३०.१९(राम द्वारा मारीच पर शीतेषु नामक मानवास्त्र का प्रयोग ), कथासरित् ३.४.२३४शीतोदा sheeta/ shita
शीतल/शीतला नारद १.११७.९४(शीतला अष्टमी की पूजा व स्वरूप), स्कन्द ५.१.१२(मर्कट तीर्थ में शीतला का माहात्म्य), ७.१.१३५(शीतला गौरी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.५३९, २.१४०.७३(शीतल प्रासाद के लक्षण ) sheetala/ shitala
शीर्ष ब्रह्माण्ड ३.४.२१.८८(महाशीर्ष : भण्डासुर के सेनापति पुत्रों में से एक ), द्र. मार्गशीर्ष, रुद्रशीर्ष, शतशीर्ष sheersha/ shirsha
शील पद्म १.१९.३२५, १.२०.८५(शील व्रत का माहात्म्य व विधि), ३.३१.१८३, ५.११, ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५९(शील सौन्दर्य हेतु रत्न दान का निर्देश), ब्रह्माण्ड ३.७.४६९मातृकाएं, भविष्य ४.१०६(शीलधना : मैत्रेयी द्वारा कृतवीर्य - पत्नी शीलधना को अनन्त व्रत का उपदेश, शीलधना द्वारा कार्तवीर्य पुत्र की प्राप्ति), भागवत ९.२३.२(महाशील : जनमेजय - पुत्र, महामना - पिता, अनु वंश), मत्स्य १०१.३९(शील व्रत), मार्कण्डेय ७०/६७.३०, विष्णुधर्मोत्तर ३.२०८(शील प्राप्ति व्रत), ३.२६३(शील की प्रशंसा), शिव २.१.३शीलनिधि, २.५.४१, स्कन्द ४.१.२९.१५६(शीलवती : गायत्री सहस्रनामों में से एक), महाभारत वन ३१३.७०, शान्ति १२४, लक्ष्मीनारायण २.२०९.८९(प्रह्लाद द्वारा शील दान पर सारे गुणों के निष्क्रमण का वर्णन ), २.२२६.७२(शील के चिदम्बर होने का उल्लेख), ३.१५, ३.१०७.८४शीलव्रता, ३.१११, ३.१८४.४२शीलधर्मा, ४.६, ४.६३शीलयानी, कथासरित् ७.२.३८, १०.२.५८शीलहर, १२.५.२३७, १२.७.२५शीलधर, द्र. दीर्घशील, दु:शील, भद्रशील, वाशीला, विक्रमशील, श्रीशील, सत्वशील, सुशील sheela/ shila
शीला भविष्य ४.९४(सुमन्तु व दीक्षा - पुत्री, कौण्डिन्य - पत्नी शीला द्वारा अनन्त व्रत का पालन), वामन ६९.१३२(शमीक - पत्नी शीला द्वारा मातलि पुत्र की प्राप्ति ) sheelaa/ shilaa
शुक गणेश २.८.१(महोत्कट गणेश द्वारा शुक रूप धारी राक्षस - द्वय उद्धत व धुन्धु का वध), गर्ग ७.४०(शकुनि असुर की मृत्यु का शुक में निहित होना, गरुड द्वारा शुक का वध), देवीभागवत ११०, १.१४(व्यास व शुकी रूपी घृताची से शुक की उत्पत्ति, शुक हेतु अन्तरिक्ष से दण्ड, कृष्णाजिन आदि का पतन), १.१४+ (व्यास द्वारा शुक से गृहस्थाश्रम स्वीकार करने का आग्रह, शुक की अस्वीकृति), १.१७(जनक के वैराग्य का दर्शन करने हेतु शुक का मिथिला गमन, द्वारपाल से संवाद, राग - विराग का निरूपण), १.१८+ (जनक के उपदेश से शुक का पीवरी से विवाह, सन्तान उत्पत्ति, ऊर्ध्व लोक गमन), नारद १.५०(शुक की उत्पत्ति के संदर्भ में वाक्/संगीत के लक्षणों का निरूपण), १.५८(व्यास व घृताची से शुक की उत्पत्ति की कथा), १.५९(मोक्ष विषयक ज्ञान प्राप्ति हेतु शुक का जनक के निकट गमन), १.६०.३९+ (सनत्कुमार द्वारा शुक को विषयों से निवृत्ति का उपदेश), १.६२(शुक का तप से ऊर्ध्व गति होना, श्वेत दीप व वैकुण्ठ धाम में विष्णु के दर्शन, पुन: पृथिवी पर आकर व्यास से भागवत शास्त्र का पठन), १.९१.१३०(शुक द्वारा दक्षिणामूर्ति शिव की आराधना), पद्म २.८५(च्यवन द्वारा कुंजल शुक से संवाद, दिव्यादेवी के पतियों के मरण का वृत्तांत), २.१२२(धर्मशर्मा बालक का शुक के शोक में मृत्यु के पश्चात् कुञ्जल शुक बनना), २.१२३, ५.५७(सीता द्वारा शुक-शुकी का वार्तालाप श्रवण व बन्धन, शुकी व शुक द्वारा सीता को शापदान), ५.७२.६७(दीर्घतपा व्यास - पुत्र, जन्मान्तर में कृष्ण - पत्नी बनना), ६.१७५(वेश्या - पालित शुक की ऋषियों द्वारा शिक्षा, शुक के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, गीता के प्रथम अध्याय के माहात्म्य का प्रसंग), ६.१९८.६८(शुक द्वारा भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को भागवत कथारंभ का उल्लेख), ७.१५.२२(वेश्या द्वारा शुकशावक को रामनाम की शिक्षा, विष्णुलोक गमन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८५.११८(अञ्जन चोर के शुक बनने का उल्लेख - शुकोऽप्यञ्जनचोरश्च मिष्टचोरः कृमिर्भवेत् ।।), ब्रह्म २.५८/१२८(अग्नि का शुक रूप धारण कर शिव-पार्वती के रमण स्थान में प्रवेश), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१२(अग्नि, पवमान – पुत्र? - द्वितीयस्तु सुतः प्रोक्तः शुकोऽग्निर्यः प्रणीयते॥), २.३.८.९२(द्वैपायन व अरणी से शुक का जन्म, शुक व पीवरी के पुत्रों के नाम), भविष्य ३.२.४(चूडामणि नामक शुक द्वारा रूपवर्मा के विवाह में सहयोग), ३.३.१३.४१(पुंडरीक नाग द्वारा शापित शुक का वृत्तान्त), ३.३.२८.५६(वेश्या द्वारा कृष्णांश को पुनः शुक बनाने व भोजन न देने का उल्लेख), ३.३.२९.८(शुक मुनि द्वारा मञ्जुघोषा अप्सरा से मुनि नामक पुत्र उत्पन्न करना), भागवत १.१९(प्रायोपवेशन पर बैठे परीक्षित के पास शुक का आगमन), मत्स्य १५.८(शुक के पीवरी कन्या का पति बनने तथा कृत्वी कन्या को जन्म देने का कथन) , मार्कण्डेय १५.२८(चोरी के फलस्वरूप शुक योनि की प्राप्ति), वराह १७०.४८+ (शुकोदर : वामदेव - शिष्य, शुकदेव मुनि के शाप से शुक बनना, गोकर्ण से संवाद , मथुरा यात्रा), वामन ९०, वायु ६९.३२०(शुकी व गरुड की सन्तानों के नाम), ७०.८४(पीवरी व शुक की सन्तानों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.९(अग्नि के स्वरूप के संदर्भ में शुकों के वेद होने का उल्लेख - श्मश्रु तस्य विनिर्दिष्टं दर्भाः परमपावनम् ।। ये वेदास्ते शुकास्तस्य रथयुक्ता महात्मनः ।।), स्कन्द २.१.७.६०(शुकावेदित पद्मावती परिणय वृत्तान्त), २.१.९.६३(तोण्डमान द्वारा पञ्चवर्णी शुक का पीछा, श्रीनिवास को शुक की प्रियता, श्री व भू देवियों द्वारा शुक का पालन), २.१.९(शुक मुनि द्वारा तोण्डमान को उपदेश), ३.१.२०(शुक द्वारा जटा तीर्थ में मन: शुद्धि), ३.१.२३(यज्ञ में उपद्रष्टा), ५.३.९७.३१(सत्यभामा द्वारा राजा वसु के पास शुक द्वारा संदेश प्रेषण), ६.६४.१२ (पूर्व जन्म में शुक चित्ररथ का चमत्कारी देवी की प्रदक्षिणा से राजा होना), ६.९०.३१(शुक द्वारा देवों को अग्नि का वास स्थान बताने पर अग्नि द्वारा शुक को शाप, देवों द्वारा उत्शाप), ६.१४७(व्यास व वटिका/पिङ्गला से शुक के जन्म की कथा, शुक का व्यास से संवाद, वन गमन), ७.१.७८(शुक द्वारा वैश्वानर लिङ्ग की प्रदक्षिणा से अगस्त्य व लोपामुद्रा बनना), ७.३.७(शुक द्वारा अचलेश्वर की प्रदक्षिणा से वेणु नृप बनना), हरिवंश १.१८, महाभारत शान्ति ३४१(शुक द्वारा दोषों का त्याग कर सिद्धि प्राप्ति का वर्णन), अनुशासन ५, योगवासिष्ठ २.१(शुक द्वारा जनक से शिक्षा प्राप्ति का वर्णन), वा.रामायण ४.४१.४३(ऋषभ पर्वत पर स्थित ५ गन्धर्वपतियों में से एक), ६.२०(रावण द्वारा सुग्रीव को शुक नामक दूत का प्रेषण, वानरों द्वारा शुक की दुर्दशा, राम कृपा से मुक्ति), ६.२५(रावण के मन्त्रीद्वय शुक व सारण द्वारा राम की वानर सेना का गुप्त रूप से निरीक्षण, वानरों द्वारा बन्धन व मोचन), ६.२९(रावण द्वारा शुक व सारण का सभा से निष्कासन), ६.३६.१९(लङ्का के उत्तर द्वार के रक्षकों के रूप में शुक व सारण का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.३२१, १.३५०, १.४९५, १.५०४, २.२८.२५(शुक जाति के नागों का कथार्थी होना), ३.३२.११(गार्हपत्य अग्नि – पुत्र - गार्हपत्यसुतौ शंस्यं शुकं तथा ह्यभक्षयत् ।। ), ३.५२, ३.११४.७४शुकायन, कथासरित् ३.६.७९, १०.३.२५, १२.५.२३७, १२.१०.६, shuka
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