पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Shadaanana, Shadgarbha, Shashthi, Shodasha, Shodashi etc. are given here. षडानन गणेश २.११३.४६(षडानन द्वारा सिन्धु - मन्त्रियों मैत्र व कौस्तुभ से युद्ध), २.११४.१३(सिन्धु व गणेश के युद्ध में गन्धासुर का षडानन से युद्ध), पद्म १.६९, ६.११७, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१३१(षडानन का साम्ब रूप में अवतरण), भविष्य २.१.१७.१२(चूडा में अग्नि का नाम), वामन ५७(विभिन्न माताओं के विभिन्न नामों से पुत्र की षडानन संज्ञा), विष्णुधर्मोत्तर १.२२८+, लक्ष्मीनारायण १.३२८.६(षडानन के निशुम्भ से युद्ध का उल्लेख ), कथासरित् ९.५.१८०, द्र. कुमार, कार्तिकेय, स्कन्द, shadaanana/ shadanana
षड्गर्भ अग्नि २७५.५०(षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), देवीभागवत ४.२२(मरीचि व ऊर्णा - पुत्र, ब्रह्मा के शाप से कालनेमि व हिरण्यकशिपु के पुत्र बनना, हिरण्यकशिपु के शाप से देवकी - पुत्र बनना, कंस द्वारा वध), भागवत १०.८५(मरीचि व ऊर्णा - पुत्र, ब्रह्मा के शाप से हिरण्यकशिपु- पुत्र बनना, जन्मान्तर में देवकी - पुत्र, कंस द्वारा वध, कृष्ण द्वारा सुतल लोक से लाना), मत्स्य ४६.१३(वसुदेव व देवकी के षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), वायु ९६.१७३(षड्गर्भ संज्ञक पुत्रों के नाम), विष्णु ४.१५.२६, हरिवंश २.२(कालनेमि - पुत्र, हिरण्यकशिपु- पौत्र, देवकी गर्भ में स्थापित करना ) shadgarbha
षण्ड ब्रह्माण्ड २.७३? लक्ष्मीनारायण २.२६.८७(षण्ड की व्याख्या : न जुहोति, न स्नाति, न ददाति इत्यादि ), ३.१००.२३, shanda
षण्मुख गणेश १.४३.१(त्रिपुर व शिव के युद्ध में षण्मुख के प्रचण्ड से युद्ध का उल्लेख), १.८५.३८(६ कृत्तिकाओं द्वारा गङ्गा में त्यागे वीर्य से षण्मुख की उत्पत्ति), नारद १.६६.१३२(षण्मुख गणेश की शक्ति भृकुटी का उल्लेख ) shanmukha
षण्ढ गरुड १.२१७.३०(कलाप हरण से षण्ढ योनि की प्राप्ति का उल्लेख), २.४६.२५(उदक्या गमन से षण्ड बनने का उल्लेख), मार्कण्डेय १५.३४, १५.३९, विष्णुधर्मोत्तर १.१९८, स्कन्द ५.३.१५९.२६, लक्ष्मीनारायण १.५१५, २.१४.३०(षण्ढिका राक्षसी द्वारा नागास्त्र का मोचन ), ४.५७, shandha
षष्टि शिव १.१८.४६(षाष्टिक अन्न के प्राकृत होने तथा गोधूम आदि के पौरुष होने का उल्लेख ) shashti
षष्ठ महाभारत वन १७९.१६(षष्ठ काल में सर्प रूप नहुष के बल का उल्लेख ), उद्योग १४०.१४(षष्ठे त्वां च तथा काले द्रौपद्युपगमिष्यति - कृष्ण – कर्ण संवाद), अनुशासन १६३.४२(एक, चतुर्थ, षट्, अष्ट कालों में भक्षण के फल), आश्वमेधिक ५७(उत्तंक द्वारा षष्ठ काल में सौदास से मणिकुण्डल की याचना), ९२(रन्तिदेव द्वारा षष्ठ काल में सक्तु भोजन, अतिथि का आगमन, नकुल का स्वर्णिम बनना), वामन ८६(राक्षस द्वारा पापनिवृत्ति हेतु षष्ठ काल में भोजन आरम्भ करना, विप्र के उपदेश से मुक्ति), वायु २.३९.३८(योग, तप आदि के द्वारा षष्ठ काल में - -- षष्ठे काले निवर्त्तन्ते तत्तदाहर्विपर्यये ) shashtha
षष्ठी अग्नि १८१( भाद्रपद षष्ठी आदि में कार्तिकेय की पूजा का निर्देश), देवीभागवत ९.१.७८(षष्ठी का देवसेना से तादात्म्य, महत्त्व), ९.३८(शुक्ल पक्ष की षष्ठी को देवसेना की उपासना), ९.४६(षष्ठी देवी द्वारा प्रियव्रत व मालिनी के मृत पुत्र को जीवित करना, स्तोत्र व पूजा विधान, देवसेना नाम), नारद १.११५(षष्ठी तिथि के व्रत : कार्तिकेय पूजा, ललिता पूजा, कपिला - पूजा, कात्यायनी देवी की पूजा, देवसेना पूजा, वरुण व पशुपति पूजा आदि), २.२३.६९(षष्ठी को तैल का वर्जन), ब्रह्मवैवर्त्त २१, २.४३(षष्ठी का देवसेना नाम, बालकों की धात्री, प्रियव्रत उपाख्यान), भविष्य १.४६(भाद्रपद षष्ठी को गाङ्गेय के दर्शन, कार्तिकेय षष्ठी), वराह २५(षष्ठी तिथि(?) को अहंकार से कार्तिकेय के जन्म की कथा ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२२१.५०(षष्ठी तिथि को पूजनीय कार्तिकेय आदि देवों के नाम व फल), स्कन्द ५.३.२६.११०(षष्ठी तिथि को मधूक फल दान से कार्तिकेय समान पुत्र प्राप्ति का कथन), ६.५५.२(माघ शुक्ल षष्ठी को नलेश्वर लिङ्ग की पूजा), ६.७१.४२(चैत्र शुक्ल षष्ठी को स्कन्द शक्ति की पूजा), ७.१.१२८.८(माघ शुक्ल षष्ठी को सागरादित्य की पूजा), ७.१.२५९(भाद्रपद षष्ठी को पर्णादित्य की पूजा), ७.१.३४३.७(प्रौष्ठपदी/भाद्रपदी कृष्ण षष्ठी को कपिला षष्ठी व्रत, कूर्म व कपिला गौ की पूजा), हरिवंश २.८०.४३(गूढ गुल्फ, शिर आदि के लिए षष्ठी को सलिलौदन भक्षण का निर्देश - गूढगुल्फशिरौ पादाविच्छन्त्या सोमनन्दिनि । षष्ठ्यां षष्ठयां वरारोहे भोक्तव्यं सलिलौदनम् ।। ), लक्ष्मीनारायण १.२०५.५५(प्रकृति के ६ रूपों में अन्तिम षष्ठी के वंशदा गुण का उल्लेख - मूलप्रकृतिरूपैषा षष्ठी बोध्या च वंशदा । ), १.२७१(विभिन्न मासों की शुक्ल पक्ष षष्ठियों में करणीय व्रतों का वर्णन), १.३१३(अधिकमास द्वितीयपक्ष षष्ठी व्रत के माहात्म्य का वर्णन), २.५.१(षष्ठी/मनसा देवी द्वारा रात्रिकाल में बालकृष्ण की असुरों से रक्षा का वृत्तान्त), २.१८६(षष्ठ्यां फेरुनसर्षिदेशान् परीशानराजराज्यं हरिर्जगाम), २.२०२(भाद्रशुक्लषष्ठ्यां प्रातः कर्मचारयोजनं), २.२२७(यज्ञभूमौ षष्ठ्यां सायं चोपदेशादि भोजनं शयनं), २.२४३.६(मार्गशीर्ष कृष्ण , २.२९७(षष्ठ्याः प्रातः कृताह्निकाः कान्ता मन्त्रान् जगृहुः), ३.१०३.५(शुक्ल षष्ठी को दान से सद्यः बल प्राप्ति का उल्लेख - षष्ठ्यां तु च तथा दत्वा लभते सद्यशो बलम् ।), ४.१०१.९८, shashthee/ shashthi
षोडश गरुड ३.१५.५(षोडश कलाओं के रूप में ५ भूत, ५ कर्मेन्द्रिय, ५ ज्ञानेन्द्रिय व मन का उल्लेख), गर्ग ५.१७.१९, पद्म २.९०.४५(१६ महापापों के नाम), भविष्य ३.४.८.८९(अविद्या के षोडश-अङ्ग स्वरूपिणी होने का उल्लेख), मत्स्य १४१.५५(पूर्ण चन्द्र में षोडशी कला के अभाव का कथन), मार्कण्डेय ७८.२०(विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज के १५ भागों से देवों के आयुधों के निर्माण का उल्लेख ; षोडश भाग का सूर्य द्वारा धारण), १०८.१/१०५.१(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज के षोडश भाग को मण्डल में रखने का कथन), वामन ५८षोडशाक्ष, स्कन्द १.२.६.१४(महीसागर सङ्गम पर चोरों द्वारा षोडश व एकविंश धन की चोरी का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.२००.१०३(नारद द्वारा इडा आदि १६ नाडियों का भेदन कर ब्रह्मरन्ध्र में प्रवेश करने का कथन ), चरक संहिता सूत्राध्याय १०.२(भेषज के चतुष्पात्, षोडशकल होने का उल्लेख), shodasha
षोडशी नारद १.८८.२३(राधा व ललिता के षोडशीत्व को प्राप्त होने का उल्लेख; १६ कलाओं का वर्णन), १.८८.२१९(राधा की १६ कलाओं में षोडशी का स्वरूप), देवीभागवत १२.११.६७(इन्द्रनील शाला में षोडशार पद्म में स्थित कराली आदि १६ शक्तियों के नाम), मत्स्य १४१.५५(पूर्णिमा के सोम में षोडशी कला का अभाव होने के कारण चन्द्रमा का क्षय होने का कथन), स्कन्द ७.१.११८.१५(कृष्ण की षोडशी कला के रूप में मालिनी का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११५(सूर्य द्वारा षोडशी कला को ग्रस कर मुख से बाहर निकालने का उल्लेख ) shodashee / shodashi
षोडशोपचार गणेश १.६९.४४(गणेश की षोडशोपचार सहित पूजा विधि व मन्त्र), गर्ग ९.९(कृष्ण हेतु षोडशोपचार विधि), नारद १.६७(षोडशोपचार सहित देव पूजा विधि), २.५७(नारायण की षोडशोपचार पूजा विधि), स्कन्द ७.१.१७(सूर्य के षोडशोपचार हेतु विधि व मन्त्र ), लक्ष्मीनारायण २.१५६ shodashopachaara/ shodashopachara
ष्ठीवन पद्म ६.४५.१०(परम ब्रह्म के ष्ठीवन से धात्री/आमलकी वृक्ष की उत्पत्ति का कथन), लक्ष्मीनारायण २.५३३, कथासरित् १४.४.७८, १४.४.७८, |