पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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ऋचा 9 :
ऋषि : महाविष्णु, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : श्री महालक्ष्मी, बीज : गं, शक्ति : ह्रीं, कीलक : श्रीं ग॑न्धद्वारां॑ दुरा॑धर्षां नित्य॑पुष्टां करीषि॑णीम्। ई॑श्वरीं स॑र्वभूतानां ता॑मिहो॑प ह्वये श्रि॑यम्॥९॥ ग॒न्ध॒द्वा॒रां दु॑राध॒र्षां॒ नि॒त्यपु॑ष्टां करी॒षिणी॑म् । ई॒श्वरी॑ँँ सर्व॑भूता॒नां॒ तामि॒होप॑ह्वये॒ श्रियम् ॥ - तै.आ. 10.1.10 सुगन्धाढ्यामनाधृष्यां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। सर्वेश्वरीं महालक्ष्मीं नारायणो म आवह॥ - ल.ना.सं. 1.117.43 ऋग्वेद परिशिष्ट में उपलब्ध ऋचा तथा तैत्तिरीय आरण्यक में उपलब्ध यजु के पाठों में ईश्वरीं शब्द में उदात्त-अनुदात्त का अन्तर द्रष्टव्य है। यह अन्तर प्रमादवश है या सकारण है, यह अन्वेषणीय है। उपरोक्त उपरोक्त ऋचा का विनियोग अग्निपुराण 62 में वायव्य दिशा में महालक्ष्मी के अभिषेक के लिए किया गया है। करीषिणी को वायु की पत्नी कहा गया है(संदर्भ?)। सामान्य मनुष्य के शरीर से दुर्गन्ध उत्पन्न होती है। पुराणों में ऋषभ आदि की विष्ठा आदि के भी सुगन्धित बन जाने का उल्लेख है। गन्ध को पृथिवी की तन्मात्रा कहा जाता है। अर्थात् पृथिवी के खनन से गन्ध उत्पन्न होनी चाहिए। महालक्ष्मी के करीषिणीम् विशेषण के संदर्भ में, कर्मकाण्ड में आखु करीष का ग्रहण किया जाता है। आखु चूहे को कहते हैं और कहा गया है कि आखु पृथिवी के रस को जानता है, अतः वह मृदा को ग्रहण कर उसे बाहर निकालता रहता है, उसका विक्षेप करता रहता है(शतपथ ब्राह्मण 2. )। करीष शब्द की निरुक्ति कॄ – विक्षेपे + ईषन् द्वारा की जाती है। इतना ही नहीं, ऋचा के अगले पाद में महालक्ष्मी को सारे भूतों की ईश्वरी कहा गया है, केवल पृथिवी महाभूत की ही नहीं। वह सब भूतों से उनकी तन्मात्राओं को विकसित कर सकती है – आकाश से शब्द को, वायु से स्पर्श को, अग्नि से रूप को, जल से रस को और पृथिवी से गन्ध को। शिव पुराण में वायव्य दिशा में अंकुश अस्त्र का विनियोग है। योगवासिष्ठ १.२१.१० में मनुष्य रूपी हाथी को अज्ञान रूपी निद्रा से जगाने के लिए शम रूपी अङ्कुश के प्रयोग का निर्देश है। ऋग्वेद की ऋचाओं से संकेत मिलता है कि अंकुश दीर्घ का आकुंचन कर सकता है, फैले हुए अस्तित्त्व से सार का ग्रहण कर सकता है, अक्ष बन सकता है(गोपथ ब्राह्मण 2.6.11)। उपरोक्त ऋचा के यन्त्र में 8x4=32 कोष्ठक हैं।
ऋषि : काम, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : श्री महालक्ष्मी, बीज : मं, शक्ति : सं, कीलक : श्रीं म॑नसः का॑ममा॑कूतिं वाचः॑ सत्य॑मशीमहि। पशू॑नां रूप॑म॑न्नस्य म॑यि श्रीः॑ श्रयतां य॑शः॥१०॥ मन॑सः॒ काम॒माकूतिं वा॒चः स॒त्यम॑शीमहि । प॒शू॒नां रू॒पमन्य॑स्य मयि॒ श्रीः श्र॑यतां॒ यशः॑ ॥ आकूतिचितिसंकल्पसिद्धिं हरिर्म आवह। हिरण्यदासदासीदां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
ऋषि : कर्दम, छन्द : अनुष्टुप्, देवता : महालक्ष्मी, बीज : कं, शक्ति : वं, कीलक : श्रीं कर्दमेन॑ प्रजा भूता॑ म॑यि सं॑ भव क॑र्दम। श्रि॑यं वास॑य मे कुले॑ मात॑रं पद्ममालि॑नीम्॥११॥ क॒र्दमे॑न प्र॑जाभू॒ता॒ म॒यि॒ सम्भ॑व क॒र्दम । श्रियं॑ वा॒सय॑ मे कु॒ले मा॒तरं॑ पद्म॒मालि॑नीम् ॥ कर्दम का अर्थ अपने पापों के नाश के कारण उत्पन्न हुआ पंक माना जाता है। उपरोक्त ऋचा का विनियोग महालक्ष्मी के शिर के अभिषेक हेतु निर्दिष्ट है। इस ऋचा का यन्त्र त्रिभुजों से रहित है जो सहस्रार चक्र की स्थिति प्रतीत होती है।
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