पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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श्रीवत्स पर डा. कल्याणरमण का लेख श्रीवत्सः टिप्पणी – विष्णोः वृक्षस्थलः कौस्तुभ मणेः एवं श्रीवत्स चिह्नस्य स्थलं भवति। तेषां किमर्थमस्ति। मणिः दर्पणस्य रूपं अस्ति। यत्र – यत्र देहे ग्रन्थयः भवन्ति, ते मणिरूपाः। इदं कथनं अस्ति यत् तेभिः मणिभिः सूक्ष्म नाडीनां किं स्थितिरस्ति, अस्य दर्शनं कर्तुं शक्नुमः। अतः एते मणयः दर्पणरूपाः सन्ति। कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स चिह्ने किं अंतरमस्ति। विष्णुपुराणानुसारेण कौस्तुभ मणिः निर्लेप, अगुण, अमल आत्मनः प्रतीकमस्ति। एवं श्रीवत्सः अनन्तस्य प्रतीकं भवति। छान्दोग्य ब्राह्मणे कथनं अस्ति यत् श्रीवत्सः विश्वकर्मणः रूपमस्ति। अन्यत्र(सीतोपनिषद) उल्लेखमस्ति यत् श्रीवत्सः इच्छाशक्तेः प्रतीकमस्ति। लक्ष्मीनारायण संहितानुसारेण श्रीवत्सः कल्पवृक्षस्य स्वरूपमस्ति। एते सर्वे संदर्भाः संकेतं कुर्वन्ति यत् श्रीवत्सः बीजरूपेण विद्यमानं इच्छां मूर्त्त रूपं प्रदानहेतु साधनमस्ति।
टिप्पणी – विष्णु के वक्षस्थल पर कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स चिह्न विद्यमान कहा जाता है। इनका क्या अर्थ हो सकता है। मणि दर्पण का प्रतीक होती है। देह में जहां – जहां ग्रन्थि होती हैं, वे मणिरूप होती हैं। कथन है कि इन मणियों द्वारा सूक्ष्म नाडियों की क्या स्थिति है, इसका दर्शन किया जा सकता है। अतः यह मणियां दर्पण रूपा होती हैं। कौस्तुभ मणि एवं श्रीवत्स चिह्न में क्या अन्तर है। विष्णु पुराण के अनुसार कौस्तुभ मणि निर्लेप, अगुण, अमल आत्मा का प्रतीक है। एवं श्रीवत्स अनन्त का प्रतीक है। छान्दोग्य ब्राह्मण का कथन है कि श्रीवत्स विश्वकर्मा का रूप है। अन्यत्र (सीतोपनिषद) उल्लेख है कि श्रीवत्स इच्छाशक्ति का प्रतीक है। लक्ष्मीनारायण संहिता के अनुसार श्रीवत्स कल्पवृक्ष का स्वरूप है। यह सब संदर्भ संकेत देते हैं कि बीजरूप में जो इच्छा शक्ति विद्यमान है, श्रीवत्स उस इच्छा को मूर्त्त रूप प्रदान करने का साधन है। प्रथम लेखन - २६-३-२०१६ई.(चैत्र कृष्ण तृतीया, विक्रम संवत् २०७२)
संदर्भाः-
श्रीवत्सः श्रीयुक्तं वत्सं वक्षो यस्य। विष्णुः। स तु वक्षस्य शुक्लवर्णदक्षिणावर्त्तलोमावली। यथा रघुः १०।१० प्रभानुलिप्तश्रीवत्सं लक्ष्मीविभ्रमदर्पणम्। कौस्तुभाख्यमपांसारं बिभ्राणं बृहतोरसा।। श्रीवत्सो वक्षस्यनन्यमहापुरुषलक्षणं श्वेतरोमावर्त्तविशेषः। श्रीवत्सो हृत्सङ्गतमणिविशेषः कौस्तुभवदिति कृष्णदासः। - शब्दकल्पद्रुमः
इदमहमिमं विश्वकर्माणं श्रीवत्समभि जुहोमि स्वाहा ।। १० ।। - छान्दोग्य ब्राह्मणम् २.६.१० [ गो गृ ४ ८ १९, खा गृ ४. ३. ७ द्रः] निगदोऽयं पण्यलाभकामस्य होमे विनियुक्तो विश्वकर्मदेवताकः । इमं विश्वकर्माणं विश्वस्योत्पत्तिपालनविनाशाः कर्म व्यापारो यस्य स विश्वकर्मा जगतः स्रष्टा तं विश्वकर्माणम् । श्रीवत्सं श्रीः वत्स इव मातुर्नित्यं लग्ना यस्य तत्तथोक्तम् । अभि आभिमुख्येन गत्वा प्रसाद्याहं पण्यलाभकाम इदं द्रव्यं जुहोमि त्यजामि स्वाहा ।।१०।।
श्रीवत्सोऽभूत् कल्पवृक्षः कार्तिकश्चम्पको ह्यभूत् । नारदोऽभूत्पारिजातो गौरी वृन्दाऽभवत्तदा ।। ९३ ।। - लक्ष्मीनारायण संहिता १.४४१.९३
आत्मानमस्य जगतो निर्लेपमगुणामलम् । बिभर्ति कौस्तुभमणिस्वरूपं भगवान्हरिः ॥ १,२२.६८ ॥ श्रीवत्ससंस्थानधरमनन्तेन समाश्रितम् । प्रधानं बुद्धिरप्यास्ते गदारूपेण माधवे ॥ १,२२.६९ ॥ विष्णुपुराणम् श्रीवत्स अग्नि २५.१४(श्रीवत्स पूजा हेतु बीज मन्त्र), भागवत ६.८.२२(श्रीवत्स धारी विष्णु से अपर रात्र में रक्षा की प्रार्थना), वामन ८२.१८(श्रीदामा असुर की विष्णु के श्रीवत्स हरण की इच्छा), ९०.१८(उदाराङ्ग तीर्थ में विष्णु का श्रीवत्साङ्क नाम से वास), विष्णु १.२२.६९(श्रीवत्स का प्रतीकार्थ - अनन्त), लक्ष्मीनारायण १.४४१.९३(कल्पवृक्ष का रूप), २.१४०.२४(श्रीवत्स प्रासाद के लक्षण), २.१७६.१७(ज्योतिष में योग ), सीतोपनिषद (विष्णु में इच्छा शक्ति का प्रतीक) shreevatsa/ shrivatsa
कौस्तुभ अग्नि २५.१४ ( कौस्तुभ माला पूजा हेतु बीज मन्त्र का उल्लेख ), गणेश २.११३.२९ ( सिन्धु राज - मन्त्री, वीरभद्र व षडानन से युद्ध, वीरभद्र द्वारा कौस्तुभ का वध ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०.१४९(कृष्ण द्वारा सरस्वती को कौस्तुभ देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.९.७३ (समुद्र मन्थन से उत्पन्न कौस्तुभ मणि को जनार्दन द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख ), भागवत २.२.१० ( श्रीहरि के कण्ठ में कौस्तुभ मणि सुशोभित होने का उल्लेख ), ८.४.१९ ( कौस्तुभ मणि के विष्णु रूप होने का उल्लेख ), ८.८.५ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ नामक पद्मरागमणि के प्राकट्य का उल्लेख ), ११.२७.२७ ( भावना द्वारा श्रीहरि की पूजा करते हुए वक्ष:स्थल पर यथास्थान कौस्तुभ मणि की पूजा का उल्लेख ), १२.११.१० ( भगवान् द्वारा कौस्तुभ मणि के व्याज से जीव - चैतन्य रूप आत्मज्योति को ही धारण करने का उल्लेख ), मत्स्य २५०.४ ( समुद्र मन्थन से कौस्तुभ मणि के प्राकट्य का उल्लेख ), २५१.३ ( समुद्र मन्थन से प्रकट हुई लक्ष्मी तथा कौस्तुभ मणि को विष्णु द्वारा ग्रहण करने का उल्लेख ), विष्णु १.२२.६८ ( श्रीहरि द्वारा कौस्तुभ मणि के रूप में निर्लेप अगुण अमल आत्मा को धारण करने का उल्लेख ), स्कन्द ४.२.६१.२४३ (अग्निबिन्दु मुनि का कौस्तुभ मणि से एकाकार होने का उल्लेख ), ४.२.९७.८४ ( कौस्तुभेश्वर लिङ्ग के अर्चन से रत्ननिधि से युक्त होने का उल्लेख ) । kaustubha
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