पुराण विषय अनुक्रमणिका PURAANIC SUBJECT INDEX (Shamku - Shtheevana) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
A complete account of the story of Shantanu can be found at the following site : It
is well known in mythology that manifestation takes place by the combination
of male and female constituents. The male constituent is called ‘Purusha’
and the female constituent is called ‘Prakriti’.
This prakriti is eightfold and has three attributes. The eight basic elements
which constitute the nature are called sky, air, fire, water, earth, and mind,
intellect and self. Nature gradually, slowly uses these eight elements for
it’s unfoldment. First of all, nature used only first five gross elements to
create the gross manifestation. Then there was a mixing of mind and intellect
with 5 gross elements which gave rise to conscious manifestation in the form
of birds and animals. After that,
there was a mixing of the eighth element ‘self’ with the first 7 elements.
This gave rise to the manifestation in the form of human being. It is to be
remembered that in the absence of element ‘self’, the development of three
attributes of nature could not take place, hence no expansion of
consciousness. But as soon as ‘self’ was inducted in the manifestation of
first 7 elements, there was a development of three attributes of nature and
consequently, a spread of development of consciousness of nature. These three
attributes of nature are called ‘sat’, raja’ and ‘tama’ or white,
red and dark, or virtuous, mixed passion and dark passion.
It has been stated in the stories that Mahaabhishak in the heaven
descended in the form of Shamtanu on the earth. This may mean that when the
highest level in the human being, which is Mahaabhishak, one which may treat
any illness, gets attracted on the eightfold nature(Gangaa in the story), then
it descends in the lower levels of consciousness and then the soul is called
Shamtanu.
The character Bheeshma in the story points to the eighth element of
eightfold nature – the self. Hence, providing son Bheeshma to Shamtanu by
Ganga means – the attainment of element ‘self’ by the mortal soul. The
incorporation of ‘self’ in the human being provides spreading of
consciousness . The spread of consciousness manifests through
dark mind in the form of Dhritaraashtra, the mixed mind in the form of
Paandu, the demonical passion in the form of Kauravaas and the pious attitude
in the form of Paandavaas. The
other side of the coin in the story is Satyavati which may be symbolic of the
gross nature which combines with mortal consciousness in the form of Shamtanu.
This gives rise to the development and expansion of gross nature. Out of this,
the developmental instinct in the form of son Chitraangada is very short –
lived, but the instinct of expansion in the form of son Vichitraveerya goes on
increasing with the help of three attributes- sat, raja, tama. This threefold
nature is the power of mortal soul and this has been symbolized with the three
daughters of king Kaashiraaja. It is guessed that out of these three, Ambaa
may be representing sat, Ambikaa
of tamas and Ambaalikaa of rajas nature. The fetching of the three by Bheeshma
and taking them to Hastinaapura may mean the manifestation of threefold nature
at the level of gross mind due to the appearance of
element ‘self’. Then the dark nature in the form of Ambikaa
combines with an expanded consciousness called Vyaasa and this gives rise to
the dark mind in the form of Dhritaraashtra. The mixed nature(rajas) in the
form of Ambaalikaa combines with expanded consciousness Vyaasa to give birth
to a mixed type of mind named Paandu in the story.
The sat nature in the form of Ambaa remains hidden in human being and
prepares itself for some big goal. In the apparent absence of this sat nature,
an element of virtue assists the human life. This has been named Vidura in the
story. This virtuous element Vidura is born out of a female slave of Ambikaa
who is of dark nature. In the story, this character Vidura keeps the divine
instinct – Paandvaas informed
of the demonical instinct – Kauravaas, but is unable to act by itself
freely. This is just like as in the human life the virtuous element keeps him
aware of the dark instincts but remains suppressed. In a way it has been
propounded here that the so called virtuousness in human life is born as a
slave of dark nature and remains so throughout life. Now let us ponder over the name Mahaabhaarata. The main word in this is Bharata – one which fulfills. This conscious element inside us gets expanded in the form of branches and sub-branches. That is why this has been called the progeny of Bharata. This progeny of Bharata is also called the progeny of Kuru and the progeny of Puru. The human birth is the birth for action, therefore, calling this as the progeny of Kuru is meaningful. On the other hand, Puru means to fill, to complete. The expansion of consciousness in various forms imparts completeness to the human being. Hence it is also called the progeny of Puru
शन्तनु - राधा गुप्ता यह सर्वविदिति है कि पुरुष और प्रकृति के परस्पर सम्मिलन से ही यह सृष्टि बनी है । पुरुष के साथ जिस प्रकृति के सम्मिलन से यह सृष्टि बनी है, वह अष्टधा अर्थात् आठ तत्त्वों वाली तथा त्रिगुणात्मिका है । यदि हम सृष्टि के विकास क्रम पर एक दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि प्रकृति ने सृष्टि के निर्माण में सहायक अपने इन आठ तत्त्वों - पांच महाभूत(आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथिवी) तथा मन, बुद्धि व अहंकार में से धीरे - धीरे ही इन सबका उपयोग किया है । सबसे पहले प्रकृति ने केवल पांच महाभूतों का उपयोग कर जड सृष्टि का निर्माण किया । फिर पांच महाभूतों के साथ मन तथा बुद्धि नामक तत्त्वों का समावेश होकर पक्षी तथा पशु रूप चेतन सृष्टि का निर्माण हुआ । अनन्तर उपर्युक्त सातों तत्त्वों के साथ आठवें अहं नामक तत्त्व का समावेश होकर मनुष्य सृष्टि का निर्माण हुआ है । यहां यह भी स्मरणीय है कि मनुष्येतर सृष्टियों में अहं नामक तत्त्व न होने से प्रकृति की त्रिगुणात्मकता प्रकट न हो सकी, अतः 'चैतन्य' का फैलाव भी सम्भव न हो सका । परन्तु मनुष्य योनि में जैसे ही प्रकृति ने अपने सात तत्त्वों के साथ अहं तत्त्व का आधान किया, वैसे ही उसका त्रिगुणात्मक स्वरूप अभिव्यक्त होकर 'चैतन्य' का नाना रूपों में विस्तार होता चला गया । चैतन्य के नाना रूपों में विस्तार से अभिप्राय यह है कि प्रकृति की त्रिगुणात्मकता - सत्, रज, तम - के प्रस्फुटन से चैतन्य रूपी किरण प्रिज्म की भांति ( जैसे प्रिज्म से निकल कर सूर्य की एक किरण सात भागों में बंट जाती है, उसी प्रकार ) मन, बुद्धि के सहस्रों व्यापारों - जिन्हें शास्त्रों में वृत्ति नाम दिया गया है - में बंटकर अनेकता को प्राप्त हो गई । अब हम इसी उपर्युक्त वर्णित तथ्य को महाभारत में कुरुवंशीय पात्रों की उत्पत्ति के माध्यम से किस प्रकार व्यक्त किया गया है - देखने का प्रयत्न करें । स्वर्गस्थ राजा महाभिषक् का गङ्गा पर आसक्त होकर पृथिवी पर शन्तनु रूप में उत्पन्न होना यह इंगित करता है कि मनुष्य के हिरण्यय कोश में स्थित शुद्ध आत्म तत्त्व( महाभिषक्) ही सूक्ष्म रूप वाली शुद्ध अष्टधा प्रकृति ( गङ्गा ) पर आसक्त होकर जब निचले मनोमयादि कोशों में अवतरित होता है, तब जीवात्मा ( शन्तनु) नामक धारण करता है । भीष्म नामक पात्र अष्टधा प्रकृति के आठवें तत्त्व 'अहं' को इंगित करता है । अतः गङ्गा द्वारा शन्तनु को भीष्म नामक पुत्र प्रदान करने का अभिप्राय है - मनुष्य व्यक्तित्व ( जीवात्मा) को 'अहं' नामक तत्त्व की प्राप्ति । मनुष्य योनि में 'अहं' नामक तत्त्व का पदार्पण ही चैतन्य को विस्तार प्रदान करता है । धतृराष्ट्र के रूप में तमोगुणी मन, पाण्डु के रूप में रजोगुणी मन, कौरवों के रूप में आसुरी वृत्तियां तथा पाण्डवों के रूप में दैवी वृत्तियों का प्रादुर्भाव होकर चैतन्य का विस्तार होता है । इसीलिए कथा में भीष्म को 'कुरुवृद्ध' कहकर सम्बोधित किया गया है । शन्तनु की सत्यवती पर आसक्ति, फिर भीष्म के प्रयास से शन्तनु व सत्यवती का विवाह तथा पश्चात् दोनों के मिलन से चित्रांगद व विचित्रवीर्य नामक पुत्रों की उत्पत्ति यह इंगित करती है कि मनुष्य व्यक्तित्व में ही स्थूलस्वरूपा प्रकृति सत्यवती अर्थात् देह के साथ जीवात्म चैतन्य( शन्तनु) का संयोग होने पर सत्यवती अर्थात् देह अपने विकास और विस्तार की प्रवृत्तियों को प्रकट करती है । इनमें विकास की प्रवृत्ति( चित्रांगद) तो अति अल्पजीवी ही रहती है परन्तु विस्तार की प्रवृत्ति( विचित्रवीर्य) त्रिगुणात्मकता के सहारे वृद्धि को प्राप्त हो जाती है । त्रिगुणात्मिका प्रकृति आत्मचैतन्य की ही शक्ति है, इसलिए कहानी में इस त्रिगुणात्मिका प्रकृति को आत्मचैतन्य रूपी काशिराज की तीन कन्याएं कहा गया है । ऐसा अनुमान है कि अम्बा सत् प्रकृति का, अम्बिका तम: प्रकृति का तथा अम्बालिका रज: प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है । भीष्म द्वारा इन तीनों का हरण कर हस्तिनापुर में लाने का अर्थ है - अहं तत्त्व के प्राकट्य से त्रिगुणात्मिका प्रकृति का मनोमय कोश के स्तर पर प्रकटीकरण । अम्बिका रूपी तमस् प्रकृति के साथ व्यास चेतना का संयोग होने पर धतृराष्ट्र की उत्पत्ति तमोगुणी मन को तथा अम्बालिका रूपी रजस् प्रकृति के साथ व्यास चेतना का संयोग होने पर पाण्डु की उत्पत्ति रजोगुणी मन को इंगित करती है । मनुष्य व्यक्तित्व में ये दोनों - तमोगुणी तथा रजोगुणी मन ही विशेष प्रभावशाली रहते हैं । अम्बा रूपी सत् प्रकृति मनुष्य व्यक्तित्व में ही छिपी रहकर किसी बडे लक्ष्य हेतु परिपक्व होती रहती है । अतः उस सत् प्रकृति के प्रत्यक्ष रूप में न रहने पर जो धर्म तत्त्व मनुष्य जीवन में सहायक होता है - उसे ही कहानी में विदुर के रूप में प्रस्तुत किया गया है । इस धर्मतत्त्व रूपी विदुर की उत्पत्ति अम्बिका रूपी तम: प्रकृति की दासी से होती है, इसलिए जिस प्रकार कहानी में विदुर नामक पात्र दैवी वृत्तियों( पाण्डवों) को आसुरी वृत्तियों( कौरवों) से सचेत तो करता रहता है, परन्तु चाहते हुए भी स्वयं स्वतन्त्र रूप से कार्य करने में समर्थ नहीं हो पाता, उसी प्रकार मनुष्य व्यक्तित्व में निहित धर्मतत्त्व भी मनुष्य को समय - समय पर उसकी तमस् वृत्तियों से सचेत तो करता रहता है, परन्तु रहता है दबा हुआ ही । यहां इस महत्त्वपूर्ण तथ्य का प्रतिपादन किया गया है कि प्रत्येक मनुष्य में रहने वाली तथाकथित धार्मिकता वास्तव में तमस् प्रकृति की दासी से उत्पन्न होने के कारण तमस् की दासता में ही रहती है । इसके विपरीत सत् प्रकृति से आध्यात्मिकता का उदय होता है । Vedic origin of the story: In horse sacrificial ceremony, the eldest queen copulates with the dead horse simultaneously assailing the act(? ). Other queens perhaps keep her morale citing the names of Ambaa, Ambaalikaa and Ambikaa etc. The available text for the occasion is quite obscure. It is noteworthy that at no other place in vedic literature these three names appear together or even separately. Therefore, it is quite possible that the story of Bheeshma fetching the three daughters of Kaashiraaja for his nephew and then conceiving in wombs from sage Vyaasa has been fabricated to explain this event in Ashwamedha sacrifice. The dead horse is actually not a dead horse. In sacrificial language it is called a horse whose faculties have been widened. The same is the meaning of the word Vyaasa also. कथा का वैदिक उद्गम - विपिन कुमार तैत्तिरीय संहिता ७.४.१९.१-३, आपस्तम्ब श्रौत सूत्र २०.१७-१८ व बौधायन श्रौत सूत्र १५.३० आदि में अश्वमेध यज्ञ के वर्णन के अन्तर्गत मृत/संज्ञप्त अश्व के साथ महिषी नामक पत्नी समागम करती है और अपना अपना असंतोष व्यक्त करती है - निन्दा, गर्हणा करती है । इस पर वावाता तथा परिवृक्ती नामक पत्नियां यह कहकर उसको उपालम्भन देती हैं कि अम्बे अम्बाल्यम्बिके - - - - - । इसके पश्चात् तीनों पत्नियां सुवर्ण, रजत और लौहमय सूचियों से मृत अश्व के शरीर पर असि पथ का कल्पन करती हैं । ऐसा कहा जा सकता है कि संज्ञप्त अश्व को महाभारत की कथा में व्यास चेतना का नाम दे दिया गया है जबकि यजमान की तीन प्रकार की पत्नियों को अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका नाम दे दिया गया है ।
|